मुक्तक/दोहा

सुमंगला नारी!

सपने सतरंगी बुने, आँखों में उल्लास।
गौरव, गरिमा देश की, सत्यार्थी विश्वास।।
नारी सबला खुद बने, साहस से लबरेज।
बाती आलोकित रहे, सूरज-सा हो तेज।।
ज्ञानी, कल्याणी बने, कौशल का भंडार।
नारी कोमल, मोहिनी, संस्कारी परिवार।।
उजली प्रेमिल धूप हो, मंगल, शुभ आचार।
शीतल छाया नेह की, घर आँगन उजियार।।
अपनी रक्षा खुद करे, आलोकित यश कीर्ति।
नारी स्वयंसिद्धा बने, साहस की प्रतिमूर्ति।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८