लघुकथा

लघुकथा – रावण नहीं जला

लंका दहन और रावण वध कार्यक्रम का कवरेज लेने पत्रकार होने के नाते मैं भी समारोह स्थल पर मौजूद था। बारिश होने के आसार के बावजूद गाँधी मैदान ठसाठस भरा हुआ था। अभी भी लोगों का आना निरंतर जारी था। मैदान के बीचों-बीच रावण का विशाल पुतला लगा हुआ था। इसी पुतले में आग लगाकर विस्फोटक से रावण और सोने की लंका का दहन किया जाना था।
निर्धारित समय पर नगर भ्रमण कर श्रीराम, लक्ष्मण और हनुमान जी के वेश में कलाकार मैदान में पहुंचे। मुख्य अतिथि के रूप में अपने समर्थकों के साथ पहले से ही पधारे हुए नेताजी ने उनकी आरती उतारी।
जब पुतले में आग लगाने के लिए वे आगे बढ़े तब रावण ने उन्हें पास बुलाया और कुछ कहा। नेताजी चुपचाप वापस अपनी सीट पर आकर बैठ गए। राम, लक्ष्मण और हनुमान का अभिनय करने वाले कलाकार भी सकते में आ गए।
तभी जोर की आंधी आई। आसमान पर छाए हुए काले बादल झूमकर बरसने लगे। लोगों में भगदड़ मच गई। और थोड़ी ही देर में मैदान खाली हो गया।
रावण का पुतला इस भीषण आंधी-तूफान को झेल नहीं पाया और भूमि पर गिर गया। ज्योंहि नेताजी वापस लौटने के लिए अपनी गाड़ी में चढ़े, मैं उनके सामने पहुंच गया और पूछा- “नेताजी, रावण ने आपसे क्या कहा कि आपने आग नहीं लगाई।”

नेताजी घबराहट में बोले- “रावण ने कहा कि वह जलने के लिए तैयार है। पर उसे वही जलाएगा जिसमें श्रीराम की तरह मर्यादा पुरुषोत्तम बनने के गुण हों। जो आसुरी प्रवृत्ति वाला न हो तथा जिसने जीवन में कोई ग़लत कार्य न किया हो।
सारे शहर में चर्चा होने लगी- ‘…रावण नहीं जला’।

— विनोद प्रसाद

विनोद प्रसाद

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