गीत/नवगीत

बेमौसम बरसात

लगता है यह, बारिश का मौसम
कुछ अलग ही, गुल खिलाएगा
खुशियां मिलेंगी, इसमें संशय है
हां मुसीबतें कुछ, जरूर बढ़ाएगा।

अक्टूबर के, मध्य में बरसात
साथ में बिजली, कड़क रही है
घर -घर फैली है बीमारी
सचमुच यह आपदा बड़ी है ।

गरीब किसान और मध्यम वर्ग की
आशाओं पर, ग्रहण लगाएगा
लगता है यह, बारिश का मौसम
कुछ अलग ही, गुल खिलाएगा ।।

पल में उजाला, पल में अंधेरा
कुदरत तेरे, खेल निराले
तेरी मन मर्जी, के आगे
सब हैं असहाय से, सब बेचारे ।

कुछ पूंजीपतियों, के चेहरों
पर अवश्य, मुस्कान जगाएगा
लगता है यह, बारिश का मौसम
कुछ अलग ही, गुल खिलाएगा।।

गर्मी हो, सर्दी हो, या हो वर्षा
समय पर हों तो, अच्छा लगता है
बेमौसम किसी का, आ टपकना
चिन्ता का सबब, ही बनता है ।

अपने हाथ में, ज्यादा कुछ नही है
इंसान भला कुछ, क्या कर पाएगा
लगता है यह, बारिश का मौसम
कुछ अलग ही, गुल खिलाएगा ।।

खेती, फसलें, हो जाएंगी चौपट
खाद्यान्न का संकट, आ सकता है
सरकार के लिए, भी होगी समस्या
मंहगाई का हंटर, चल सकता है ।

ऊपर वाला ही, अब हम सबको
इस विपदा से, निजात दिलाएगा
लगता है यह, बारिश का मौसम
कुछ अलग ही, गुल खिलाएगा।।

सरकारी तंत्र की है, यह जिम्मेदारी
समय रहते, जरूरी कदम उठाएं
निर्यात पर जरूरी, रोक लगाकर
खाद्यान्न के मूल्य, काबू में लाएं ।

सत्ताधारियों को कुछ करना पड़ेगा
अन्यथा यह मौसम,बहुत रुलाएगा
लगता है यह, बारिश का मौसम
कुछ अलग ही, गुल खिलाएगा।।

लगता है यह, बारिश का मौसम
कुछ अलग ही, गुल खिलाएगा
खुशियां मिलेंगी, इसमें संशय है
हां मुसीबतें कुछ, जरूर बढ़ाएगा।

— नवल अग्रवाल

नवल किशोर अग्रवाल

इलाहाबाद बैंक से अवकाश प्राप्त पलावा, मुम्बई