कविता

एक ऐसा दीप जलाना तुम।

मैं दीप जलाकर रखता हूं।
मैं मंगल गीत गाता हूं।
मैं हौसलों को मुट्ठी में रखता हूं।
मैं खुशियों के गीत गाता हूं।
उन अंधेरों को हरा दो।
जो समृद्धि का संहार करे।
उन उजालों को बचालो।
जो इतिहासों को फिर से गढ़े।
हर घर आंगन रोशन हो,
यहां खुशियों का मौसम हो।
मन का मैल सब धुल जाए।
यहां ज्ञान-दीप प्रकाश हो।
रोशनी  के इस पर्व पर,
संकट के बादल छठ जाए।
जन मन की पीड़ा मिट जाए,
सब मिलकर एसा नवगान करें।
मानव धर्म महान बने।
मैं आशाओं के तेल से,
विश्वास-दीप जलाता हूं।
मैं उन गमों को भुलाता हूं।
जो जीवन-रेखा विनाश करें।
झिलमिलाती रोशनी में,
मैं सपने नए सजाता हूं।
घनघोर अंधेरा,जीवन सागर,
मैं विजयपथ दिखलाता हूं।
आंधीयों में भी जल करके
मैं संदेश सदा यह देता हूं।
मत हार मान कर रोना तुम।
नव पथ का पथ ढूंढ लेना तुम।
उदास चेहरों की गुम हंसी को,
सृजन का बीज बो देना तुम ।
यहां अंतर्मन को रोशन कर दे,
एक ऐसा दीप जलाना तुम।
— डॉ. कान्ति लाल यादव

डॉ. कांति लाल यादव

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