लघुकथा

दीये रोशन हो उठे!

“तीन दिवालियां आईं और गईं प्रियतम, तुम न आए. कब आओगे? तुम्हारे बिना दिवाली तो क्या हर दिन सूना-सूना लगता है.” पांचवीं पास बिटानी देवी चिट्ठी लिख रही थी.
“दहेज में मुझे जो भैंस मिली था, जानते हो न कितना दूध देती है! तुम्हारे सामने ही डेयरी का काम शुरु किया था, अब काम परवान चढ़ गया है. अब 16 गायें और 11 भैसें हैं, जिनसे हर दिन 100 से 120 लीटर दूध मिलता है. दूध सारा बिक जाता है, पैसे भी खूब आ रहे हैं, पर उन पैसों का क्या करूं. मेरा खाने-हंडाने वाला तो परदेस बैठा है!” आंखों से आंसू लुढ़ककर प्रियतम के पास पहुंचने वाले थे!
“पप्पू छः का हो लिया मुन्नी पांच की हो ली, दोनों बार-बार पूछते हैं कि पापा कब आएंगे?”
“आज फिर मूंग बने थे. पप्पू तुम पर गया है. दही में मूंग डालकर चटखारे लेकर खाता है. तुम्हारे बिना मूंग क्या कोई भी चीज नहीं भाती!”
“और क्या कहूं! बच्चों के लिए जो कुछ बनता है, हलक के नीचे उतार लेती हूं, अपने लिए अलग से कुछ बनाने का मन ही नहीं करता! बस एक बार तुम आ जाओ, हमारा हर दिन होली होगा, हर रात दिवाली.”
“मैं ज्यादा पढ़ी-लिखी नहीं हूं, इसलिए कविताई तो लिख नहीं पाऊंगी, इसी को कविताई भी समझ लेना और मेरे मन की बात भी! आज बस इतना ही.
तुम्हारे आने की आस में,
तुम्हारी बिटानी
दिवाली के एक महीना पहले मोलू को यह खत मिला था, उसका मन भी बिटानी के पास पहुंचने को बेताब था, पर उसने खत का कोई जवाब नहीं दिया.
दीपावली की सांझ को उदास-सी बिटानी दीये जला रही थी. तभी भैंस पगुरा उठी, बच्चे “पापा आ गए, पापा आ गए!” कहकर शोर मचाने लगे.
बिटानी का मन-कमल खिल गया, दीये रोशन हो उठे!

*लीला तिवानी

लेखक/रचनाकार: लीला तिवानी। शिक्षा हिंदी में एम.ए., एम.एड.। कई वर्षों से हिंदी अध्यापन के पश्चात रिटायर्ड। दिल्ली राज्य स्तर पर तथा राष्ट्रीय स्तर पर दो शोधपत्र पुरस्कृत। हिंदी-सिंधी भाषा में पुस्तकें प्रकाशित। अनेक पत्र-पत्रिकाओं में नियमित रूप से रचनाएं प्रकाशित होती रहती हैं। लीला तिवानी 57, बैंक अपार्टमेंट्स, प्लॉट नं. 22, सैक्टर- 4 द्वारका, नई दिल्ली पिन कोड- 110078 मोबाइल- +91 98681 25244