गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बना ले जो तुम्हें अपना वही रसधार बाकी है |
सजा दे गुल से गुलशन जो अभी वो प्याऱ बाकी है |

मुक़म्मल ख्वाब हों जिससे वही तदबीर करनी है,
भरे बाजार में अपना वही किरदार बाकी है |

तुम्हारे जुल्म की आंधी नहीं दीपक बुझा पाई ,
तिमिर की हर शिलाओं पर अभी उजियार बाकी है |

महब्बत इश्क के जज़्बात अब भी दिल में उठते हैं,
अधूरी ख्वाहिशों की आज भी मनुहार बाकी है |

ये नफ़रत के घने साए हमें कब तक डराएंगे
जलाओ नेह के दीपक अभी अंधियार बाकी है |

नज़र में रोशनी भर दे मोहब्बत का असर ऐसा,
मोहब्बत हो गई उनसे अभी इज़हार बाकी है |

ये दिल भी एक दरिया है मोहब्बत बहती है जिसमें,
लरजती भावनाओं की “मृदुल” झंकार बाकी है |
मंजूषा श्रीवास्तव “मृदुल”

*मंजूषा श्रीवास्तव

शिक्षा : एम. ए (हिन्दी) बी .एड पति : श्री लवलेश कुमार श्रीवास्तव साहित्यिक उपलब्धि : उड़ान (साझा संग्रह), संदल सुगंध (साझा काव्य संग्रह ), गज़ल गंगा (साझा संग्रह ) रेवान्त (त्रैमासिक पत्रिका) नवभारत टाइम्स , स्वतंत्र भारत , नवजीवन इत्यादि समाचार पत्रों में रचनाओं प्रकाशित पता : 12/75 इंदिरा नगर , लखनऊ (यू. पी ) पिन कोड - 226016