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नवाचारी शिक्षा और बुनियादी तथ्य

प्रथमत: जानते हैं कि नवाचारी शिक्षा क्या है ? नवाचारी शिक्षाशास्त्र क्या है ? नवाचारी शिक्षाशास्त्र में दो शब्द है, यथा- नवाचारी और शिक्षाशास्त्र। यहाँ नवाचारी और शिक्षाशास्त्र में भी दो-दो शब्द है। वहीं शिक्षा और शास्त्र मिलकर शिक्षाशास्त्र शब्द बना है। शिक्षा के बारे में जिस पुस्तक में उल्लेख है, उसे शिक्षाशास्त्र कहते हैं। संक्षेप में यह कहना समीचीन होगा कि शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए प्रयोग करनेवाले ही शिक्षाशास्त्र के अंतर्गत नवाचारी कहलाते हैं।

प्रश्न है, क्या ‘नवाचारी’ शब्द का मूल शब्द नवाचार है? नव को नवीन और आचार से आशय प्रयोग से है, तो आचारी का अर्थ है- प्रयोग करनेवाला, इसे आचार्य भी कह सकते हैं। वहीं शिक्षा और शास्त्र मिलकर शिक्षाशास्त्र शब्द बना है। शिक्षा के बारे में जिस पुस्तक में उल्लेख है, उसे शिक्षाशास्त्र कहते हैं। वहीं साधनसेवी से तात्पर्य संसाधनों को मुहैया करानेवालों से है। शिक्षा के क्षेत्र में संसाधन यथा- पाठ्यपुस्तक, सिलेबस बुक, ग्राफ, मानचित्र, विविध उपस्कर इत्यादि का अप्रतिम महत्व है।

ध्यातव्य है, साधनसेवी के द्वारा नवाचारी शिक्षा को लेकर कई प्रयोग बताए भी जाते हैं। यह परिलब्धि उत्कंठा लिए है। मनोयोग और मनोवेग मनोवैज्ञानिक स्थिति है, जो कि साधनसेवी के लिए संवेगीय स्थिति है। दो स्थितियाँ बिम्बवत चलती रहती हैं- सिद्धांत और व्यवहार यानी सैद्धांतिक स्थिति और व्यवहारिक स्थिति। शिक्षा में नए-नए प्रयोग कल भी हुए थे और आज भी जारी है।

सार्थक प्रयास लिए छात्रों के अध्ययन के साथ-साथ शिक्षकों के द्वारा अध्यापन कार्यों में भी नित्य नूतन प्रयोग जारी हैं। पहले लोग बासी रोटी खाते थे, बासी भात खाते थे। खुद के खाने के साथ-साथ अपने बच्चों को भी खिलाते थे। तब बासी भात या बासी रोटी के साथ नमक, तेल, मिर्च, प्याज या अचार खाते थे। तब आर्थिक दुश्वारियां भी कायम थी। आज तो लोग ताजा खाने में विश्वास रखते हैं। अब कोई अगर बासी भात या रोटी को नमक, मिर्च, तेल, प्याज या अचार के साथ खाए भी तो इन सब चीजों को लेकर कोई इसे फ्राई करेंगे और पुलाव जैसे बनाकर खाएंगे। इन सब चीजों से बनी पुलाव ही ‘नवाचार’ है।

वाकई में नवाचारी शिक्षाशास्त्र के प्रसंगश: यह कथ्य अंकित है कि शिक्षा के बारे में जिस पुस्तक में उल्लेख है, उसे शिक्षाशास्त्र कहते हैं। नवप्रयोगों में सजीवतम वस्तुस्थिति भी आती हैं, तो निर्जीव वस्तुस्थिति भी। सजीव और निर्जीव स्थितियाँ न सिर्फ स्वयं में आकर्षित हैं, अपितु विन्यास लिए सैद्धांतिक स्थिति और व्यवहारिक स्थिति में परिणत हो जाती हैं। सिद्धांत के बाद प्रयोग का महत्व है, तो उनमें नवप्रयोगों की स्थितियाँ भी आबद्ध होती हैं। शिक्षा में नए-नए प्रयोग कल भी हुए थे और आज भी हो रहे हैं। छात्रों के अध्ययन में शिक्षकों के अध्यापनकार्य भी अंतर्निहित है।

द्रष्टव्य है कि सजीव नवाचार के प्रसंगश: के उदाहरण हैं, तो वहीं निर्जीव नवाचार के अंतर्गत भी कई उदाहरण हैं। निर्जीव नवाचार के विन्यस्त: नव प्रयोगों की जरूरत शिक्षक और शिक्षार्थी यानी दोनों को है। उदाहरण के तौर पर चंद्रग्रहण और सूर्यग्रहण सिर्फ खगोलीय घटना है, किन्तु कई लोग इसे अंधविश्वास से जोड़ते हैं। इसे दूर करने के लिए हम जो नूतन प्रयोग कर छात्रों को बताएंगे, वही नवाचार है और इसे विश्लेषण करनेवाले हम शिक्षक बन्धु ही नवाचारी कहलाएंगे। यह ब्रह्मांडीय पिण्ड के प्रासंगिक निर्जीव, किन्तु गतिमान स्थितियाँ हैं।

डॉ. सदानंद पॉल

एम.ए. (त्रय), नेट उत्तीर्ण (यूजीसी), जे.आर.एफ. (संस्कृति मंत्रालय, भारत सरकार), विद्यावाचस्पति (विक्रमशिला हिंदी विद्यापीठ, भागलपुर), अमेरिकन मैथमेटिकल सोसाइटी के प्रशंसित पत्र प्राप्तकर्त्ता. गिनीज़ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स होल्डर, लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स होल्डर, इंडिया बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, RHR-UK, तेलुगु बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, बिहार बुक ऑफ रिकॉर्ड्स इत्यादि में वर्ल्ड/नेशनल 300+ रिकॉर्ड्स दर्ज. राष्ट्रपति के प्रसंगश: 'नेशनल अवार्ड' प्राप्तकर्त्ता. पुस्तक- गणित डायरी, पूर्वांचल की लोकगाथा गोपीचंद, लव इन डार्विन सहित 12,000+ रचनाएँ और संपादक के नाम पत्र प्रकाशित. गणित पहेली- सदानंदकु सुडोकु, अटकू, KP10, अभाज्य संख्याओं के सटीक सूत्र इत्यादि के अन्वेषक, भारत के सबसे युवा समाचार पत्र संपादक. 500+ सरकारी स्तर की परीक्षाओं में अर्हताधारक, पद्म अवार्ड के लिए सर्वाधिक बार नामांकित. कई जनजागरूकता मुहिम में भागीदारी.