सामाजिक

श्रुति परम्परा का नव युगीन स्वरूप है एफएम रेडियो

प्राचीन इतिहास, संस्कृति और संस्कारों का आत्मसात करके ही सभ्यताओं का क्रमिक विकास हुआ है। सदियों से यह अजस्र अविरल धारा किसी न किसी रूप में बहती रहकर समाज को नित नूतन और सम सामयिक परिवेशीय ज्ञान का बोध कराते हुए जीवन लक्ष्यों के प्रति सजग और प्रेरित करती रही है।

प्राचीनकाल में ज्ञान और अनुभवों का अखूट खजाना श्रुति परम्परा के सहारे युगों तक पीढ़ी-दर-पीढ़ी बढ़ता रहा। शिलालेखों, भोजपत्रों, ताड़पत्रों, वस्त्रों, कागजों और किताबों से लेकर ज्ञान संवहन की परम्परा एक-डेढ़ दशक से उस अत्याधुनिक दौर में प्रवेश कर चुकी है जहां सब कुछ यंत्र आधारित हो गया है।

मनुष्य की जीवनशैली से लेकर कार्यकलाप के हर क्षेत्र में विज्ञान ने इतनी जबर्दस्त पैठ कर ली है कि उसके सहारे के बिना जीने की कल्पना भी नहीं की जा सकती। मनुष्य के जीवन में ज्ञान और अनुभवों भरी जिन्दगी के साथ मन-मस्तिष्क को सुकून देने के लिए मनोरंजन की आवश्यकता स्वाभाविक है। इस दृष्टि से रेडियो और टेलीविज़न की आजकल तकरीबन हर घर तक सहज पहुंच है।

आकाशवाणी, दूरदर्शन और सैकड़ों चैनलों के बाद एफ.एम. के प्रयोग ने कुछ वर्ष पूर्व लोक जीवन में ख़ासी हलचल मचायी और आज देश-दुनिया के कई हिस्सों में एफ.एम. की लोकप्रियता बुलन्दियों पर है।

सरकारों के साथ ही निजी और सामुदायिक रेडियो चैनल्स का प्रयोग हाल के वर्षों में बहुत अधिक पसरा। कई दूरस्थ और दुर्गम इलाकों में इसका प्रसार देखने लायक है। अत्याधुनिक उपकरणों, श्रवण माधुर्य और व्यापक प्रसार के साथ ही एफ.एम. के प्रति जनाकर्षण की मुख्य वजह इसकी आंचलिकता भी है।

आज देश के कोने-कोने में फैले एफ.एम. रेडियो स्टेशन क्षेत्र विशेष की आंचलिक संस्कृति, कलाओं, इतिहास, गाथाओं और सभी प्रकार की थातियों को उजागर करने का काम कर रहे हैं। हाल के वर्षों में एफ.एम. में निजी भागीदारी ने एफ.एम. का जिस कदर विस्तार किया है वह अपने आप में रिकार्ड ही है। मनोरंजन और ज्ञान के इस अजस्र स्रोत का लाभ समाज-जीवन के प्रत्येक कर्म और वर्ग से जुड़े लोगों को हो रहा है।

ख़ासकर युवा पीढ़ी के लिए एफ.एम. वह माध्यम है जिसके जरिये उन्हें अपने क्षेत्र व समुदाय के इतिहास, कला-संस्कृति, व्यक्तित्वों, लोक रंगों और रसों, त्योहारों-पर्वों और विभिन्न क्षेत्रों की ऐतिहासिक परम्पराओं, सम सामयिक गतिविधियों, केरियर डवलपमेन्ट आदि की जानकारी सहज प्राप्त होने लगी है।

एफ.एम. पुरानी और नई पीढ़ी के बीच का वह सेतु है जो पुरातन विरासतों और ज्ञानराशि को सहेज कर नई पीढ़ी तक पहुंचाता है और वह भी सरल, सुबोधगम्य और सहज संवादों के साथ। कहने को लोग कह सकते हैं कि एफ.एम. की वजह से नई पीढ़ी पर बुरा असर पड़ सकता है लेकिन यही बात तब भी कही गई थी जब फिल्मों का जमाना था।

निरन्तर प्रतिस्पर्धा और अपने अस्तित्व को बचाए रखते हुए आगे बढ़ने की होड़ में आज का युवा पहले की अपेक्षा कहीं ज्यादा समझदार और जागरुक है तथा अब उसे कान पकड़ कर यह समझाने की आवश्यकता नहीं है कि वह क्या करे, क्या न करे। जिजीविषा की होड़ में युवा अपने आप अपने मार्ग तलाशने के प्रति अपेक्षाकृत ज्यादा फिकरमंद हो गए हैं।

ऐसे में एफ.एफ. उनके लिए ज्ञान और मनोरंजन का वह स्रोत है जो उनका मनोरंजन करता हुआ जहां आनंद प्रदान करता है वहीं ज्ञान और सम सामयिक हलचलों के प्रति उन्हें हमेशा तरोताजा और अपडेट बनाए रखता है।

एफ.एम. के प्रसार की वजह से आज की युवा पीढ़ी को अपने तीज-त्योहारों और सामाजिक, धार्मिक, आध्यात्मिक तथा बहुविध परम्पराओं को जानने तथा उनका अनुगमन करने की सीख मिलती है।

प्रसारण माध्यमों के विस्तार की वजह से समाज और क्ष्रेत्र की हर छोटी से छोटी गतिविधि आज रेडियो पर सुनाई देने लगी है। एफ.एम. की वजह से संस्कृति और संभाषण कला तथा रचनात्मक क्षेत्रों में रुचि रखने वाले युवक-युवतियों को अपनी प्रतिभा दिखाने और संवारने के अवसर मिले हैं और एक बहुत बड़ा युवा समुदाय आज एफ.एम. की बदौलत अपने आपको रचनात्मक प्रवृत्तियों से जुड़ा हुआ पाने के साथ ही आत्मनिर्भरता का स्वाद चख रहा है।

हालांकि आज के समय में जबर्दस्त मोबाइल क्रान्ति ने जनमानस को पाश में जकड़ रखा है। बावजूद इसके रेडियो और एफएम का वजूद अपनी जगह कायम है और रहेगा।

डॉ. दीपक आचार्य

*डॉ. दीपक आचार्य

M-9413306077 dr.deepakaacharya@gmail.com