कविता

शून्य

मैं अपने जीवन से
जब कभी हताश होती हूंँ ,
देख शून्य  की ओर
अपनी व्यथा सुनाती हूंँ।
मौन होकर वह मुझे सुनता ,
मेरे मन का बोझ हल्का होता ,
चेतना प्रकाश से कहती –
उसकी चुप्पी ही मेरी प्रेरणा बनती ,
फिर , मैं अपनी आंतरिक शक्तियों को एकत्रित करती हुई ,
अपनी उदासी को दूर करते हुए
जीवन में एक कदम आगे बढ़ती हूँ।
— चेतना प्रकाश ‘चितेरी’

चेतना सिंह 'चितेरी'

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