कविता

मछली

हे जलजीवन !
तुम मस्त रहती हो अपनी दुनिया में ,
ना तुममें भेदभाव की भावना ,
तुम प्रेममयी हो !
तालाब , नदियांँ , सागर की तुम रानी हो !
अहं नहीं तुमको अपनी सुंदरता पर ,
रंग –  बिरंगी दिखती हो !
तुम तो मेरे मन को भाती हो ,
जल से करती हो ! कितना प्रेम ,
यह हम सब ने देखा है,
अलग होते ही प्राण निछावर कर देती हो ,
हे मछली !
तुम ऐसे ही रानी नहीं कहलाती हो!
तुम ! एकनिष्ठ हो !
हमें सच्चा प्रेम करना सिखाती हो !
जग को देती हो सुंदर संदेश !
— चेतना प्रकाश ‘चितेरी’

चेतना सिंह 'चितेरी'

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