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मिलजुल के सीखो रहना जी
ये जीवन है एक लड़ाई,इसमें होती हाथापाई। जीतोगे तो ताज मिलेगा ,हारोगे तो मिलेगी खाई। वैसे तो मिलते कम मौके, पर जब पाओ करो भलाई। खुशियों के रंगीन चमन में,आग लगाती नफरत ताई। दुनिया के मेले में अक्सर,अच्छों में भी दिखी बुराई। मिलजुल के सीखो रहना जी,इसमें सबकी होय भलाई। — महेंद्र कुमार वर्मा
बाल कविता – हेंचू जी उवाच
हेंचू जी हय से सतराये। आँख दिखाते वे गुर्राए।। ‘घोड़ा जी तुम गर्दभवंशी। एक सदृश हम सब के अंशी। हमसे अलग -थलग रहते हो। उच्च अंश का क्यों कहते हो? हम दोनों हैं भाई – भाई। क्यों ऊँची निज जाति बताई? छोटा कद हमने यह माना। भैया बड़ा तुम्हें है जाना।। फिर भी तुम इतने […]
होता उल्टे काम का, गलत सदा परिणाम
मटकू गदहा आलसी, सोता था दिन-रात। समझाते सब ही उसे, नहीं समझता बात॥ मिलता कोई काम तो, छुप जाता झट भाग। खाता सबके खेत से, चुरा-चुरा कर साग॥ बीवी लाती थी कमा, पड़ा उड़ाता मौज। बैठाये रखता सदा, लफंदरों की फौज॥ इक दिन का किस्सा सुनो, बीवी थी बाजार। मटकू था घर में पड़ा, आदत […]