गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

इक रोज़ कहीं गुज़र न जाऊँ
मैं प्यार बग़ैर मर न जाऊँ

बस एक निगाह पुरमुहब्बत
फिर देख अगर सँवर न जाऊँ

तू याद मुझे सदा रहेगा
मैं यार तुझे बिसर न जाऊँ

वो भी कि ज़बान ही चलाते
मैं भी कि निबाह पर न जाऊँ

आराम हराम हो गया है
बेचैन बवाल कर न जाऊँ

बन्दूक़ समक्ष शेरदिल मैं
खरगोश समान डर न जाऊँ

सब भीड़-भरे नगर बुलाते
मैं छोड़ विरान घर न जाऊँ

— केशव शरण 

केशव शरण

वाराणसी 9415295137