मुक्तक/दोहा

बेटियाँ

एक हौसला है, हम सब में उड़ान का,
पर छोटे सही, गगन तक पहचान का।
छू लेंगे गगन एक दिन, लक्ष्य बना लिया,
देखेगा नजारा जग, बेटियों की शान का।
इतिहास साक्षी है, जब जब भी हम बढ़ी है,
गार्गी- अपाला- सावित्री, लक्ष्मी सी बढ़ी हैं।
धन ज्ञान या हो ताक़त, प्रतिबिंब सबका हम,
हम ममता की मूर्ति, नभ से आगे तक बढ़ी हैं।
सीमा पर प्रहरी, अंतरिक्ष की उड़ान हो,
घर में रसोई चौका, खेतों में किसान हो।
शिक्षा स्वास्थ्य प्रशासन, कोई भी जगह,
हारी नहीं हैं बेटी, पाताल- आसमान हो।
— अ कीर्ति वर्द्धन