सामाजिक

लोगों का व्हाट्सप स्टेटस हमारा स्टेटस क्यों बिगाड़ रहा है?

आजकल  लोग सबसे ज़्यादा व्यस्त हैं । समझ ही नहीं आता दिमागी तौर पर, शारीरिक तौर पर या सिर्फ सोच से !
सामान्यत: सभी वर्ग के लोग जो भी काम कर रहे हों आय हेतु, जीवन निर्वहन के लिए  किंतु  उसके  बाद घर-परिवार, सौदा-तरकारी के जरूरी कामकाज निपटाने के मध्यांतर, गेहूँ नहीं बीनते, न धोते-सुखाते और न ही तिल साफ करते हैं, और न ही गाँव के जैसी कठिन जीवन शैली का निर्वहन करते हैं कि हल चलाते हों, गाय भैंसों को भूसा सानी देते हों,  कंडे थापते हों, या हैंड पम्प से कुएँ से पानी खींचते हों, या कि चूल्हा सुलगाते हों, फूंकनी का धुआँ आँखोँ में भरते हों…. इनसे आधा परिश्रम है शहरों में रहने वाले नौकरी करते युवाओं के पास, चाहे आदमी हों या औरतें  सभी के पास कंप्यूटर, लैपटॉप,मोबाइल आदि वैज्ञानिक चीज़ें हैं  जिनमें दिमाग भी लगता है और आँखें भी किन्तु
शारीरिक स्वास्थ्य बिलकुल निम्नस्तर पर पहुँच चुका है इन सबकी वजह से । बस हर काम इन पर ही हो रहा है  ! लोगों ने खुद को इनके  इतना पराधीन कर दिया है कि वह अब इसमें ही व्यस्त हो चुके हैं । सारे रिश्ते-नातों का स्पर्श भूल गया हैं । बस इमोजी हँसाते हैं, इमोजी रुलाते हैं।
अपनी जिंदगी को व्यस्तता का नाम दे इंसान ने खुद को एक सीमित और आभासी दायरे में बांध  लिया है । जहां  बस इंतजार करता है उन लम्हों का कि बस कब सारा दिन के काम मिलता रहे फ़ोन को देखने का, किसने क्या स्टोरी लगाई है, किसने क्या स्टेटस लगाया है,कौनसी नई गाड़ी ली है, किस तरह के कपड़ों का फैशन चल रहा है, अरे इतनी पतली/पतला हो गई/ गया ! कौनसा डाइट चार्ट फॉलो किया होगा ? वगैरह वगैरह
 दिमाग में इन्हीं सब कामों की व्यस्तता ज्यादा है आजकल की युवा पीढ़ी के ! और तो और किसी की तरक्की, खुशी के स्टेटस, स्टोरी देखकर उसपर रिप्लाई न करना या एक स्माइली भेजकर ये जताना कि आप उनकी खुशियों में शामिल हैं। मन में तो ईर्ष्या, द्वेष, बैर भरा रहता है, मन यही सोचता है लोगों का कि कहाँ से इतना वक्त है घूमने का, कहां से नोट छाप रहे हैं, ……. ये भी फैशन चल पड़ा है कि आप सीन का ऑप्शन हाइड करते हैं ।
आखिर क्यों इतनी कुंठित भावना आ गई है मन में ? आपके पास ईश्वर का दिया हुआ स्वस्थ, निरोगी शरीर हो, अपने परिवार के साथ बैठकर खाना खाने का वक्त हो, असल ज़िंदगी में जीने की सच्ची वजह हो तो आप अमीर गरीब हैं इससे क्या फर्क पड़ता है । घर में हों,ऑफिस में हो या यात्रा करते हुए हम गाड़ी,बस, ट्रेन या हवाई जहाज़ में हों किंतु सोच हमारी मोबाइल में और दूसरों के स्टेटस में ही अटकी हुई है । ये बीमारी बहुत खतरनाक है जिसने अपने बड़ों को दिया जाने वाला वक्त छीन लिया है।
आपमें से कई लोगों के घरों में ऐसा भी होता होगा कि यदि बच्चा मोबाइल लिए बैठा है और उससे 1 गिलास पानी मांगो तो 3 आवाजों के बाद पानी मिलेगा। या एक हाथ में मोबाइल लिए हुए ही रसोई से पानी आएगा ।
स्वस्थ मानसिकता नहीं रही अब किसी की भी।  किसी की खुशियों में दिल से शामिल होना भूल गए हैं हम सब।
घर के ही चार रिश्ते एक-दूसरे के स्टेटस और स्टोरी को देख मन में न जाने कैसे-कैसे विचार ले आते हैं ?
मेरे चाचा का बेटा, मेरी बुआ की बेटी , मेरे मामा का लड़का,  मेरा कज़न भाई, ये इतना घूमते क्यों हैं ? ये विदेश कैसे गए ?, ये फाइव स्टार में खाना खा रहे हैं ?
और न जाने कितनी बातें अनर्गल हैं हमारी व्यस्तता की झूठी कहानी की।
असल में  स्टेटस और स्टोरी पर कोई कुछ भी शेयर करे हमें कभी नकारात्मक सोच से उनका स्वागत नहीं करना चाहिए बल्कि ये सोचना चाहिए कि  सब अपने-अपने तरीके से खुश रहते हैं । कोई सामान्य जीवन-यापन में, कोई बदलते वक्त में खुद को ढालकर ।  हमें अपना और अपनी ज़िंदगी का स्टेटस बस स्वस्थ, निर्मल रखना होगा  जिससे हमें सबका स्टेटस खुद ब खुद स्वस्थ लगेगा ।
— भावना अरोड़ा ‘मिलन’ 

भावना अरोड़ा ‘मिलन’

अध्यापिका,लेखिका एवं विचारक निवास- कालकाजी, नई दिल्ली प्रकाशन - * १७ साँझा संग्रह (विविध समाज सुधारक विषय ) * १ एकल पुस्तक काव्य संग्रह ( रोशनी ) २ लघुकथा संग्रह (प्रकाशनाधीन ) भारत के दिल्ली, एम॰पी,॰ उ॰प्र०,पश्चिम बंगाल, आदि कई राज्यों से समाचार पत्रों एवं मेगजिन में समसामयिक लेखों का प्रकाशन जारी ।