भाषा-साहित्य

साहित्य संस्थाओं एवं लेखनियता के प्रति नजरिया सम्मानजनक हो

कई लोगो की सोच है कि सोशल मीडिया पर अनेक साहित्य मंच है जो सम्मान पत्र बाटने,एवं प्रतिभागी से सहयोग राशि लेते है। वे इसे एक व्यापार का पहलू मानते है।जबकि साहित्य मंच साहित्य को जीवंतता प्रदान करने में एक संस्था के जरिए प्रदत्त विषय पर या विभिन्न साहित्य विद्या के जरिए जैसे हायकू,तांका, पिरामिड,दोहे,छंद, अतुकांत,तुकांत कविता,पत्र,लघुकथा,कहानी,चित्राधारित पर कविता आदि कई प्रकार से साहित्य उपासकों को लेखनियता की ऊर्जा का समावेश कर हौसला भरते है।संस्था के मापदंडों के अनुरूप साहित्य नही होने से उनकी कार्यकारिणी टीम उस रचना को अस्वीकृत करती है साथ ही सुधार हेतु व्याकरण आदि के प्रयोग हेतु रचना सुधार करवाती भी है।उसके बाद सम्मान पत्र संस्था प्रदान करती है।जो प्रतिभागी सम्मान पत्र  हेतु संस्था स्थान तक किसी कारण से जा नही सकते उन्हें संस्था डाक,या डिजिटल सम्मान पत्र सोशल मीडिया पर उनके ईमेल,व्हाट्सएप आदि के जरिए भेजती है।कई संस्था निःशुल्क भेजती है।ये तो साहित्य उपासको पर निर्भर है कि वे प्रतिभागी बने या ना बने।साहित्य संस्थाओं से जुड़ने पर साहित्य उपासकों के पास साहित्य रचनाओं के संकलन में बढ़ोत्तरी अवश्य होती रहेगी।जो एक संग्रह बन संकलन के रूप में मिल का पत्थर बनेगी।इसके अलावा साहित्य की बढ़ोतरी में कई लोग रुकावट पैदा करते है।कई लोग किसी की रचना को या किसी  के लिखे लेख चाहे जयंती के हो ,इतिहास, आदि के हो कॉपी  पेस्ट या तोड़ मरोड़ कर उपयोग में लेते है। जबकि यदि किसी का लेख या किताब में से लिया  हो तो कम से कम उस मूल लेखक की किताब या उस लेखक का उल्लेख अवश्य करना चाहिए बल्कि उससे अनुमति लेकर ही उसे प्रकाशन हेतु भेजना उचित होता है।कोई भी लेख की की सम्पूर्ण जानकारी के लिए यदि लिखना हो तो महीनों लग जाते उसके बाद वो लेख तैयार होता है। और लेख की शैली के लिए किसी अनुभवी या स्वयं का अनुभव होना चाहिए ,कोई भी इतना तो ज्ञानी नहीं की उसे हर विषय का प्राचीन आंकड़ों की जानकारी का नॉलेज हो।लेख लिखने के बाद जिस पुस्तक से लिया गया हो उस पुस्तक का नाम का उल्लेख लेख के अंत में साभार अथवा संकलनकर्ता के रूप में ना किया जाना चुराईटर की श्रेणी में है।कई साहित्यकार सोशल मीडिया पर एक दूसरे की कहानी,लेख,कविता आदि चुराकर अपने नाम से प्रकाशित करवाने लगे है। वो समझते है की जब बिल्ली आँख बंद कर दूध पीती है तो वो समझती कोई उसे नहीं देख रहा है। साहित्य की साधना में वर्षों लग जाते है। साहित्य की दुनिया में साहित्य उपासकों को पता चल ही जाता है ये उनकी रचना है। ये चुराइटर प्रथा बंद होनी चाहिए. किताबो को पढ़कर सामर्थ्यवान,बुद्धिमान बने ताकि लोग आपका साहित्य पढ़ कर प्रेरणा ले सके। साहित्य की चोरी यानि बुद्धि का अपमान है। इस पर अंकुश लगाया जाना आवश्यक है।

— संजय वर्मा “दृष्टि”

*संजय वर्मा 'दृष्टि'

पूरा नाम:- संजय वर्मा "दॄष्टि " 2-पिता का नाम:- श्री शांतीलालजी वर्मा 3-वर्तमान/स्थायी पता "-125 शहीद भगत सिंग मार्ग मनावर जिला -धार ( म प्र ) 454446 4-फोन नं/वाटस एप नं/ई मेल:- 07294 233656 /9893070756 /antriksh.sanjay@gmail.com 5-शिक्षा/जन्म तिथि- आय टी आय / 2-5-1962 (उज्जैन ) 6-व्यवसाय:- ड़ी एम (जल संसाधन विभाग ) 7-प्रकाशन विवरण .प्रकाशन - देश -विदेश की विभिन्न पत्र -पत्रिकाओं में रचनाएँ व् समाचार पत्रों में निरंतर रचनाओं और पत्र का प्रकाशन ,प्रकाशित काव्य कृति "दरवाजे पर दस्तक " खट्टे मीठे रिश्ते उपन्यास कनाडा -अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर विश्व के 65 रचनाकारों में लेखनीयता में सहभागिता भारत की और से सम्मान-2015 /अनेक साहित्यिक संस्थाओं से सम्मानित -संस्थाओं से सम्बद्धता ):-शब्दप्रवाह उज्जैन ,यशधारा - धार, लघूकथा संस्था जबलपुर में उप संपादक -काव्य मंच/आकाशवाणी/ पर काव्य पाठ :-शगुन काव्य मंच