कविता

बातें अधिकार की!

कर्तव्य कर्म शिद्दत से निभाइए,
अधिकार अपने आप ही मिल जाएगा।।
जिम्मेदारी में आनंद अनुभूति पाइए,
आदर-सम्मान आप ही मिल जाएगा।।
नुक्ताचीनी, शिकवा-शिकायत न करिए,
जो सुधार औरों से अपेक्षित, आप अपनाइए।।
भलाई चाहते हो दुनिया दीगर से गर,
खुद बुराई का दामन न कभी थामिए।।
गौरव कला, कौशल, ज्ञान भंडार से,
जिद, जुनून, हुनर से व्यक्तित्व निखारिये।।
धन- वैभव, संपत्ति, दौलत पल दो पल की,
रिश्तों की बगिया में महकती बहार खिलाइए।।
दंभ, अहंकार, लोभ, लालच, ईर्ष्या, द्वेष,
रिपु सर्व विनाशक, दूरियां बनाकर चलिए।।
नशा धन, दौलत, नशीली दवाइयों का,
सम्मान, प्रतिष्ठा, अधिकार न गंवाइए।।
केवल बातें न हो मानवाधिकार की,
त्याग, समर्पण, कर्तव्य, मानवता धर्म निभाइये ।।
प्रेम से रहिए, खुशियां खूब बांटिए,
जीवन बेशकीमती, व्यर्थ न गंवाइए।।

*चंचल जैन

मुलुंड,मुंबई ४०००७८