हास्य व्यंग्य

चार लोग क्या कहेंगे!

हमारे समाज में चार की संख्या का विशेष महत्त्व है।चार धाम, चार वेद,चार वर्ण, लोकतंत्र के चार चरण (किन्तु गधा,घोड़ा न समझें) और सबसे अधिक महत्वपूर्ण यदि कोई या कुछ है तो वह है: “चार लोग” !इन चार लोगों ने ही धरती उठा रखी है।इनका बहुत ही अधिक मान – सम्मान है।ये चार ही तो संसार में छाए हुए विस्तीर्ण वितान हैं।ये तो भगवान के ही इतर नाम हैं।इन चारों के समक्ष तो वेद भी झूठे हैं। ये चार जिनसे रूठे हैं ,उनसे समझ लें परमात्मा ही रूठे हैं।चार धाम का सारा काम इन्हीं के जिम्मे है।ये जो कह डालें ,वही पत्थर की लकीर है। ब्रह्म वाक्य है। सदैव अकाट्य है।इसलिए हर आम और खास जन उसे मानने के लिए बाध्य है। क्या आपने इन चार लोगों का चटुल चमत्कार नहीं देखा? यदि नहीं देखा या कभी देखने समझने का सु अवसर नहीं मिला ;तो हम ही दिखाए देते हैं।

मान्यवर ! मेरे इस मंतव्य के आप भी एक पात्र हैं। अन्यथा न लें तो यह अकिंचन व्यंग्यकार कुछ कहने के लिए अपनी लेखनी की स्याह स्याही की लिखाई करे! आप ही की तरह जिसे भी देखो वह कोई भी काम इधर -उधर देखकर करता है। कहीं कोई देख तो नहीं रहा। जैसे किसी दुष्कर्म को अंजाम देने जा रहे हों। लोग अपने विवेक को बेच खाए बैठे प्रतीत होते हैं।बस उनके मष्तिष्क में एक यही कीड़ा रेंगता रहता है कि यदि हमने यह काम किया तो लोग क्या कहेंगे? यदि मैंने लाल रंग की शर्ट पहन ली, पिछली शादी में एक बार पहनी हुई साड़ी इस शादी में भी पहन ली, यदि मैंने बाइक छोड़कर साइकिल की सवारी कर ली, यदि मैंने अपना बेटा सरकारी स्कूल में पढ़ने भेज दिया, यदि मैंने बिना दहेज लिए ही लड़के की शादी कर ली,यदि मुझे दहेज में कार नहीं मिली,यदि मेरा घर कच्चा ही रह गया, यदि मेरी पत्नी मेरे दोस्त की पत्नी से कम सुंदर हुई,यदि मेरा मोजा किसी को जूते से बाहर फटा हुआ दिख गया, यदि मैं बिना कार लिए मॉल में चला गया,यदि मेरे कपड़ों की सफेदी उसके कपड़ों की सफेदी से कम हुई आदि आदि ऐसी हजारों लाखों हीनता – बोध की खट्टी-मीठी गाँठें हैं, जिनका खुलना सहज नहीं तो अति दुर्लभ अवश्य है।

आदमी दूसरों को देखकर जी रहा है।दूसरों की नजरों से जी रहा है।अपने लिए अपनी नजर ताक पर उठा रखी है।उसे अपने लिए अपनी नजर की कोई चिंता नहीं है। बस :”चार लोग क्या कहेंगे” : के असम्भव आदर्शों का दीवाना है।

आदमी अपनी वास्तविकता को छिपाकर अपना वह रूप प्रदर्शित करना चाहता है ,जो वह है ही नहीं। उसे चार लोगों की दृष्टि की ज्यादा चिंता है।अपने खोखलेपन को मखमली आवरण में छिपा कर बड़प्पन दिखाना उसकी आंतरिक इच्छा है। घर में लड़की को दिखाने के लिए पड़ौसी के यहाँ से सोफ़ा सेट, टी सेट, डिनर सेट, बैड सीट आदि लगाना उसकी इसी भावना से उद्भूत है।नारियों का सारा साज- शृंगार और पुरुषों का खिजाब- प्रसाधन प्रकृति को धता बताने का उपकरण मात्र ही तो है।जब कि यह एक असंभव कार्य है।

बात केवल झूठे ही अपना मन समझाने भर की है।किंतु असली बात तो चार लोगों की चिंता खाए डालती है।ये चार लोग कोई भी हो सकते हैं।हम भी और आप भी। जो कभी मन ही मन भुनभुनाते हैं ,कभी प्रत्यक्ष कह डालते हैं।कुछ लोगों को कह – टोक कर दूसरों का दिल दुखाने में ही आनन्दानुभूति होती है।वे कभी अपने गरेबाँ में झाँक कर नहीं देखते ।उन्हें तो बस दूसरों के बैडरूम, बाथरूम औऱ खिड़कियों में देखने में ही परम सुख मिलता है।अंग्रेज़ी में ऐसे पर हित चिंतकों को ‘सेडेस्टिक’ कहा जाता है।कानी दर्पण में कभी अपने टेंट को नहीं निहारती। हाँ,दूसरों की नाक जरूर कटी देख लेती है।

इन “चार लोगों” के कारण दुनिया औऱ समाज को इतना लाभ अवश्य हुआ है कि लोगों ने अपनी यथार्थता को छिपा कर अपने स्तर का पैमाना ऊँचा कर लिया है। कोई किसी से कमतर नहीं दिखना चाहता।’यावत जीवेत सुखम जीवेत, ऋणम कृत्वा घृतं पिबेत’ :का आदर्श इसी भाव से उत्पन्न हुआ। इन “चार लोगों” ने संसार का रूप स्वरूप ही परिवर्त्तित कर डाला है। इसलिए दिखावटी दिखने का दुनिया में बहुत सारा गरम मसाला है।ये आदमी उसके माँ – बाप से अधिक उसके पड़ौसियों, रिश्तेदारों, मित्रों और शत्रुओं ने ढाला है। और अंत में किन्हीं “चार लोगों” ने चार कंधों पर अर्थी पर राम नाम सत्य बोलते हुए निकाला है।

— डॉ. भगवत स्वरूप ‘शुभम्’

*डॉ. भगवत स्वरूप 'शुभम'

पिता: श्री मोहर सिंह माँ: श्रीमती द्रोपदी देवी जन्मतिथि: 14 जुलाई 1952 कर्तित्व: श्रीलोकचरित मानस (व्यंग्य काव्य), बोलते आंसू (खंड काव्य), स्वाभायिनी (गजल संग्रह), नागार्जुन के उपन्यासों में आंचलिक तत्व (शोध संग्रह), ताजमहल (खंड काव्य), गजल (मनोवैज्ञानिक उपन्यास), सारी तो सारी गई (हास्य व्यंग्य काव्य), रसराज (गजल संग्रह), फिर बहे आंसू (खंड काव्य), तपस्वी बुद्ध (महाकाव्य) सम्मान/पुरुस्कार व अलंकरण: 'कादम्बिनी' में आयोजित समस्या-पूर्ति प्रतियोगिता में प्रथम पुरुस्कार (1999), सहस्राब्दी विश्व हिंदी सम्मलेन, नयी दिल्ली में 'राष्ट्रीय हिंदी सेवी सहस्राब्दी साम्मन' से अलंकृत (14 - 23 सितंबर 2000) , जैमिनी अकादमी पानीपत (हरियाणा) द्वारा पद्मश्री 'डॉ लक्ष्मीनारायण दुबे स्मृति साम्मन' से विभूषित (04 सितम्बर 2001) , यूनाइटेड राइटर्स एसोसिएशन, चेन्नई द्वारा ' यू. डब्ल्यू ए लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से सम्मानित (2003) जीवनी- प्रकाशन: कवि, लेखक तथा शिक्षाविद के रूप में देश-विदेश की डायरेक्ट्रीज में जीवनी प्रकाशित : - 1.2.Asia Pacific –Who’s Who (3,4), 3.4. Asian /American Who’s Who(Vol.2,3), 5.Biography Today (Vol.2), 6. Eminent Personalities of India, 7. Contemporary Who’s Who: 2002/2003. Published by The American Biographical Research Institute 5126, Bur Oak Circle, Raleigh North Carolina, U.S.A., 8. Reference India (Vol.1) , 9. Indo Asian Who’s Who(Vol.2), 10. Reference Asia (Vol.1), 11. Biography International (Vol.6). फैलोशिप: 1. Fellow of United Writers Association of India, Chennai ( FUWAI) 2. Fellow of International Biographical Research Foundation, Nagpur (FIBR) सम्प्रति: प्राचार्य (से. नि.), राजकीय महिला स्नातकोत्तर महाविद्यालय, सिरसागंज (फ़िरोज़ाबाद). कवि, कथाकार, लेखक व विचारक मोबाइल: 9568481040