कविता

प्रेम दीप

तुम मेरे गीत हो तुम ही संगीत हो
मेरे मन मंदिर की तुम ही मेरे मीत हो
जब भी तन्हाई में मैं तुम्हें पुकारता हूँ
मन के रोम रोम में मैं सुकून सा पाता हूँ

प्रेम ही जीवन है प्रेम ही धड़कन है
पागल प्रेमी का प्रेम ही तन मन है
प्रेम की अथाह सागर में जब डूब जाता हूँ
प्रेम को पाकर में  चैन से सो जाता हूँ

प्रेम दीप चिराग है प्रेम ही विश्वास है
प्रेम की लौ से भागा यहॉ गम आज है
प्रेम की दीपक हर युग में जलाया है
प्रेम में अच्छे अच्छे ने अपना भाग्य पाया है

पह़ाडों की ऊँची छाती पर जब बादल का साया है
मोहब्बत की रंग से फिजां में आया  नीला काया है
जब भी गम मन को ले लेता अपनी आगोश में
प्रेम ही पथ प्रर्दशक बन देता है नयी जीवन

आओ प्रेम की दीप जला आगाज करें नव जीवन का
आओं प्रेम दीप जला सॅवारें अपनी   कल्पानाओं का
चलो आज भूल जायें जो भी गम आया है जीवन में
प्रेम दीप जला कर करें प्रकाश अपने  गुलशन में

— उदय किशोर साह

उदय किशोर साह

पत्रकार, दैनिक भास्कर जयपुर बाँका मो० पो० जयपुर जिला बाँका बिहार मो.-9546115088