संस्मरण

लोग सरकारों को कोसना बंद कर देंगे जब अपनी गिरेबां झांक लेंगे।

आजादी से पहले देश के एक ओ भी नेता थे जिन्होंने अपनी जान पर खेल कर गुलाम देश को आजाद कराया था और भारत को एक नवजात शिशु की भांति देशवासियों को सौंप कर इस देश से हमेंशा -हमेंशा के लिये मां भारती की गोद में चिर निद्रा में सो गये, आज हमारा देश सिर्फ 15 अगस्त और 26 जनवरी को उन सभी वीर सपूतों एवं सच्चे देश भक्त नेताओं को याद करता है, इस अवसर पर उनके द्वारा किये गये लम्बे संघर्षों का लम्बा चौंडा भाषण भी तत्कालीन महानुभावों द्वारा प्रस्तुत किया जाता है और प्रतिवर्ष उनके पग चिन्हों पर चलने की कसमें खाई जा रही हैं। जरा सोंचो ? 1947 के बाद भारतवर्ष की दशा सुधारने के लिये देश में नेताओं की लम्बी लाईन लगी हुयी है! फिर भारत से गुम हुई सोनें की चिडि़या वापस नही आ रही है।

सन् 15 अगस्त 1947 को कई दशकों के बाद भारत को आजादी हांसिल हुई थी, 15 अगस्त 1947 समस्त भारतवासियों के लिये एक स्वर्णिम दिन था इसी दिन भारतीयों के लिये आजादी का सूर्योदय हुआ था, देश के हर कोनें में खुशी का जस्न मनाया जा रहा था सभी बिना किसी भेद- भाव के एक दूसरे के गले से गला मिलाकर एकता और अखंडता का संदेश दे रहे थे, और सभी भारतीय पूरी इमानदारी से देश के प्रति समर्पित थे, एक पल के लिये मानों पूरा देश एक परिवार सा लग रहा था, सभी के घरों में खुशियों के दीप जल रहे थे लेकिन इन दीपों को क्या पता था कि आने वाले समय में हर दिशाओं से धूल भरी आंधियां भी आयेंगी, भारत के गगन पर फिर एक धुंध सा छा जायेगा जिसको मिटाने के लिये फिर नये नेताओं का जन्म होगा, आजादी से पहले के नेताओं का एक ही मुद्दा था गुलाम देश को आजाद कराना किन्तु अबके कर्णधारों के कई तरह के मुद्दे हैं जो अपनों को अपनों से लड़ाने में अहम भूमिका निभा रहे हैं।

आखिर! आजादी के महज चार वर्ष बाद वो दिन आ ही गया जो आज पूरे देश में अपने -अपने रंग में अलग- अलग किस्म की कहानी लेकर दिल्ली की गद्दी के लिये दौड़ लगाता नजर आ रहा है। 25 अक्टूबर 1951 को देश में नये युग की शुरूवात हो गयी थी इसी दिन हिमांचल प्रदेश के चिनी तहसील में पहला वोट पड़ा था, आजादी के संघर्ष के कारण कांग्रेस को 364 सीटों से बहुत हांसिल हुई थी। और उस समय भारतीय कम्यूनिस्ट पार्टी ने 16 सीट पर अपना कब्जा दिखा कर देश की दूसरी पार्टी के रूप में उभरी थी, आचार्य नरेन्द्र देव, जय प्रकाश, और डा0 लोहिया की सोसलिस्ट पार्टी को 12 सीटे हांसिल हुयी थीं, वहीं आचार्य कृपलानी की किसान मजदूर प्रजा पार्टी को नौ सीटें हांसिल हुयी थीं, हिन्दू महासभा को चार सीटें व डा0 श्यामा प्रसाद मुखर्जी की भारतीय जनसंघ को तीन सीटें एवं रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी को तीन सीट हांसिल हुयी, और शिड्यूल कास्ट फेडरेशन को दो सीटें हांसिल हुयी थी। उसी दौर से ही दलों के दलदल का दौर परवान चढ़ने लगा था, देश का यह पहला चुनाव देश के लिये व देशवासियों के लिये इतना आसान नही था, उस समय भी प्रत्याशी घर- घर जाकर मतदाओं को जागरूक करते थे, लोगों की निरक्षरता को ध्यान में रखते हुये पार्टियों और उम्मींदवारो के लिये चुनाव चिन्ह की व्यावस्था की गयी थी किन्तु आज की तरह मतपत्र में नाम नही सिर्फ चिन्ह थे, हर पार्टी के लिये अलग मतपेटी थी जिस पर चुनाव चिन्ह अंकित किये गये थे, इस व्यावस्था को लागू करने के लिये 12 लाख मतपेटियां बनायी गयीं और 62 कारोड़ मतपत्र छापे गये थे, चुनाव सम्पन्न होनें के बाद इन मतपेटियों को गन्तव्य तक पहुंचाना भी मील का पत्थर साबित हो रहा था, इन मतपेटियों को गंतव्य तक पहुंचानें में कुछ लोग बीमार हुये तो कुछ लोग लूट का भी शिकार हुये थे, म्यांमार की सीमा से लगे मणिपुर के पहाड़ी क्षेत्रों में स्थानीय लोगों को यह कह कर तैयार किया गया कि जो इसे पहुँचाने में मदद करेंगे बदले में उनको एक- एक कंबल तथा बंदूक का लाईसेंस दिया जायेगा। उसके ठीक पांच साल बाद सन् 1957 को देश में दूसरे आम चुनाव का बिगुल बजाया गया और दूसरी बार देश में चुनाव सम्पन्न कराया गया था।

सन् 1952 के पहले आम चुनाव के बाद से ही सभी चुनाव खास होने लगे जैसा कि पहले ही बताया जा चुका है कि चुनाव के दौरान प्रलोभनों का बाजार गर्म होंने लगा था, सबसे पहले लोगों को कंबल और बंदूक के लाइसेंस का प्रलोभन दिया गया परन्तु आज के दौर में तो प्रलोभनों की बछौर है। अभी तो हमारा चुनाव बेचारा 17 वर्ष का ही हुआ है अभी तो पूरी तरह से बालिग भी नही हो पाया है- जी हां 1951-52 से लेकर 2019 तक सम्पूर्ण देश में सिर्फ 17 बार विधान सभा के चुनाव हो चुकें हैं 2024 में देश का चुनाव बालिग होंने जा रहा है और यह पूरे 18 वर्ष का नौजवान युवा के रूप में निखर कर सबके सामने आ जायेगा। पहले के लोग संसाधनों की कमीं से जूझ रहे थे तब के नेता भी देश के विकास की रूप रेखा बना कर चुनाव लड़ते थे, चुनाव लड़ते लड़ते आज हम इस दौर में आ गयें है चुनाव के लिये ही लड़ते हैं, चुनाव में ही लड़ते हैं, और इस लिये लड़ते हैं कि चुनाव की नाव में मेरा ही हाथी सवार हो इसके लिये उसके समर्थक उसके पीछे पूरे जोर-शोर एवं मनोयोग से उसका झंडा उंचा करते फिरते रहते हैं इस फौज में सबसे ज्यादा भीड़ आज के युवाओं की होती है फिर हो भी क्यों न चुनाव भी तो बालिग होने जा रहा है और 18 से कम वाली लक्ष्मण रेखा भी हटने जा रही है।

आज का युवा जरूरत से अधिक षिक्षित और जागरूक हो चुका है, नेताओं की छोटी से छोटी जनसभा में बड़ी से बड़ी भींड़ को एकत्र करने में जुटा हुआ है! जुटे भी क्यों न क्योंकि तमाम मुद्दों पे फतह हांसिल करनी है, गरीबी मिटानी है, बेरोजगारी मिटानी है, देश के किसान को खुशहाल कर माला-माल करना है, कर्णप्रिय भाषण देश में नये नये रंग बिखेरे हुये हैं और देश की दशा सुधारनें के नाम पर देश की बागडोर भी युवाओं के हाथ में ही दिये हुये हैं, इसलिये तो देश का युवा अब अपने प्रिय प्रतिनिधि के द्वारा बताये गये मुद्दों को अमल में लाने के लिये रात दिन एक करता नजर आ रहा है, शिक्षा, संस्कार, संस्कृति ये सब अब कहने की बातें है इनसे क्या हांसिल होगा प्रतिवर्ष पूरे देश में लाखों करोंड़ो की संख्या में स्कूल व कालेजों से डिग्रियों की नई पौध देश के कोने में प्रकाश संस्लेष्ण की क्रिया के लिये उचित स्थान पर रोपण के लिये भागम भाग मचाये रहती है, लेकिन ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों के बीच इन पौधों को समुचित धूप कहां मिल पाती है।

सन् 1951-52 में रखी गयी प्रलोभन की नींव आज बहुत बडी इमारत बनकर देश में उभरी है, देश का हर चुनाव मुद्दों व प्रलोभनों से लड़ा जा रहा है, देश के हर नागरिक की एक अलग समस्या है, सबकी अलग- अलग समस्याओं के बीच मत धर्म बौना नजर आता है, चुनाव प्रचार के समय हर समाज का हर युवा वाहन का ईंधन और पेट का ईंधन पाकर अपने-अपने नेताओं की रैली में इस तरह से बावला हो जाता है मानों चुनाव के बाद बस उसी को गद्दी हांसिल होंने वाली है। वास्तविकता तो यह है कि ग्रामींण क्षेत्र के अधिकांश भारतीय अपने सीने पर हाथ रख कर यह भी नही कह सकते हैं कि मैंने देश के प्रति ईमानदारी से अपना धर्म निभाया है, और निःस्वार्थ भाव से अपना मतदान किया है, छोटे से छोटा और बडे़ से बड़ा कोई भी चुनाव हो आज की जनता अपने ईमान की अडिगता का झंडा बुलन्द नही कर सकता है क्योंकि आज के अधिकांश लोग निःस्वार्थ भाव से और अपने मत धर्म का उपयोग कर ही नही रहे हैं, उस दिन से लोग सरकारों को कोसना बन्द कर देगें जिस दिन से अपनी गिरेबां झांक लेगें।

राजकुमार तिवारी (राज)
बाराबंकी उत्तर प्रदेश

राज कुमार तिवारी 'राज'

हिंदी से स्नातक एवं शिक्षा शास्त्र से परास्नातक , कविता एवं लेख लिखने का शौख, लखनऊ से प्रकाशित समाचार पत्र से लेकर कई पत्रिकाओं में स्थान प्राप्त कर तथा दूरदर्शन केंद्र लखनऊ से प्रकाशित पुस्तक दृष्टि सृष्टि में स्थान प्राप्त किया और अमर उजाला काव्य में भी सैकड़ों रचनाये पब्लिश की गयीं वर्तामन समय में जय विजय मासिक पत्रिका में सक्रियता के साथ साथ पंचायतीराज विभाग में कंप्यूटर आपरेटर के पदीय दायित्वों का निर्वहन किया जा रहा है निवास जनपद बाराबंकी उत्तर प्रदेश पिन २२५४१३ संपर्क सूत्र - 9984172782