सामाजिक

याचना करें तो केवल ईश्वर से

मनुष्य का पूरा जीवन ऐषणाओं का पूरक और पर्याय रहा है जहाँ हर किसी को कुछ न कुछ कामना ताजिन्दगी बनी ही रहती है। इसके सकारात्मक और नकारात्मक, वैयक्तिक अथवा सर्वमांगलिक प्रकार हो सकते हैं लेकिन इच्छाओं और तृष्णाओं का सागर हर पल लहराता ही रहता है। कोई-कोई बिरला ही होगा जो संसार में आने के बाद इन इच्छाओं से परे रहकर जीवन जीना सीख जाए, अन्यथा घर-बार छोड़कर संन्यासी बने संत-महात्मा, मठाधीश-महंत और महामण्डलेश्वरों तक को बड़े-बड़े लोगों के आगे नतमस्तक होते और सांसारिक भोग-विलास में रमे हुए देखा गया है। ऐसे में शाश्वत सुख, शान्ति और आत्मतोष की प्राप्ति के लिए लोग भटकते हुए नज़र आते हैं पर कहीं उन्हें इसका तनिक भी आभास नहीं हो पा रहा है।

हम लोग अपनी तुच्छ इच्छाओं, भविष्य की कल्पनाओं और कामों तथा ऐषणाओं की पूर्ति की बुनियाद स्थापित करने से लेकर मामूली कामों तक के लिए ऐसे-ऐसे लोगों को पूजते रहते हैं, आदर-सम्मान देते रहते हैं और उनके लिए समर्पित होकर ऐसे सेवा कार्यों में रमने लग जाते हैं, जिन लोगों का असली चरित्र ही कुछ अलग होता है। आमतौर पर हम जिन लोगों को बड़ा, प्रभावशाली, महान और लोकप्रिय मानकर पूजते और आदर करते हैं उनकी असलियत से अनजान होने के कारण हम उनकी जी भर कर इतनी अधिक पूजा और चापलुसी करने लगते हैं जिसकी दस फीसदी भी हम अपने माँ-बाप, गुरुजनों और वास्तविक आदरणीयों की नहीं करते। जिन लोगों को हम समर्थ और स्नेही मानकर पूजते हैं, कुछ न कुछ चाहने के फेर में श्वानों की तरह तलवे चाटते रहते हैं, उनमें से अधिकांश लोग स्वयं ही बहुत बड़े भिखारी की तरह जीवन गुजारते हैं। वे भी किसी न किसी और के सामने किसी न किसी शुभाशुभ कर्म और लाभ को पाने के लिए क्रीत दासों और जरखरीद गुलामों की तरह गिड़गिड़ाते और पद-मद या कद की भीख मांगते नज़र आते हैं।

ऐसे लोगों के समक्ष याचना करना अपने माता-पिता, पूरखों और गुरुजनों से लेकर सभी श्रेष्ठीजनों का अपमान है। इससे हमारे पितर अप्रसन्न होते हैं और अनिष्ट करते हैं। ऐसे में दुनिया के तमाम प्रपंचों और निराशाओं को त्याग कर भगवान की भक्ति और साधना मार्ग अपनाकर ही व्यष्टि और समष्टि का कल्याण संभव है। इसलिए शासन-प्रशासन के नुमाइन्दों और तथाकथित प्रभावशाली लोगों की जी हूजूरी, चापलुसी और षोडषांग समर्पण भावों को छोड़कर परम सत्ता का आश्रय प्राप्त करके ही संसार का आनंद प्राप्त किया जा सकता है। लौकिक कामनाओं के वशीभूत होकर नेताओं, अफसरों और तथाकथित प्रभावशाली लोगों के पीछे भागने की मनोवृत्ति छोड़कर सर्वशक्तिमान परमात्मा का चिन्तन और आराधन करना चाहिए।

जो मांगना है वह परमात्मा से ही मांगें, वही सभी इच्छाओं को पूर्ण करने वाला है। हमारे जीवन का कोई भी कर्म ऐसा नहीं है जो परमात्मा से मांगने पर पूर्ण नहीं हो सकता है। एक हजार लोगों की जी हूजूरी से बढ़कर है दिन में एक बार भगवान का सच्चे मन से स्मरण, प्रार्थना और ध्यान। हमारी दिन भर की जो भी कामना है उसे प्रभु के सम्मुख स्पष्ट रूप से पूरी श्रद्धा और अनन्य भक्ति भाव से कह दें, फिर देखें काम कैसे पूरा होता है। इसकी बजाय हम और आप किसी गॉड फादर, गॉड मदर, आलाकमान, आलुकमान, भालुकमान या और किसी आदमी के इर्द-गिर्द चक्कर काटें, इससे कोई भला होने वाला नहीं है। जब एक बार हम ईश्वर के प्रति पूर्ण निष्ठा से समर्पित हो जाते हैं तब हमारे सारे कामों की जिम्मेदारी, पारस्परिक नेटवर्किंग और सहयोग का काम ईश्वर अपने हाथ में ले लेता है।

हमारा कोई भी काम क्यों न हो, ईश्वर से निवेदन करने पर वह भक्त के काम पूरे करने के लिए सूक्ष्मातिसूक्ष्म तरंगों के माध्यम से समर्थ व्यक्ति को प्रेरित कर देता है और जरूरत के समय पर ऐसे व्यक्ति हमें मिल जाते हैं जिनके सहयोग से काम पूर्णता प्राप्त कर लेता है। इसलिए अनन्य भाव से ईश्वर का चिंतन करना अधिक लाभकारी है।

– डॉ. दीपक आचार्य

*डॉ. दीपक आचार्य

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