कहानी

रूढ़िवादी


        यह कहानी शुरू होती है ,गंगा यमुना के मिलन  के शहर प्रयागराज से , जहाँ संगम और गंगा के किनारे रूढ़िवादी परंपराओं का पोषण होता है ,और दारागंज और अल्लापुर में दस गुणे दस के कमरों में प्रगतिवाद की ओर बढती एक रूढ़िवादी दुनिया बसती है, तो सिविल लाइन के महंगे शोरूम्स में प्रगतिवादी दुनिया ।

इसी शहर में एक मेडिकल कालेज है, जिसे लोग उसके अस्पताल के नाम से ज्यादा जानते हैं,उसके नाम से कम । इसी मेडिकल कालेज के बगल में भारत की स्वतंत्रता की लड़ाई का गवाह चंद्रशेखर आजाद पार्क है , उसी पार्क के रनिंग ट्रैक के किनारे की एक बेंच पर एक भूरी आँखो वाली गौरांगी एक गेंहुए रंग वाले लड़के के साथ बैठी अपने भावी जीवन को लेकर कई रंग बिरंगे सपने बुन रही है ।
लड़की का नाम सुप्रिया पंडित है और वह एमबीबीएस द्वितीय वर्ष की छात्रा है, तथा अपने ही देश में शरणार्थी कहे जाने वाली कश्मीरी पंडित समुदाय से है । लड़का प्रयागराज के पड़ोसी जिले का है और लड़के का नाम विभुम अवस्थी है और वह सुप्रिया का सहपाठी है । लड़का भी उसकी आँखों में डूबने की कोशिश में एकटक उसे देख रहा है ।अभी तक इनके रिश्तें की पहचान एक ब्वायफ्रेंड और गर्लफ्रेंड के रूप में हैं ,जिसे भारत का रूढ़िवादी कहा जाने वाला पारंपरिक समाज अच्छी दृष्टि से नही देखता ,हाँ आधुनिक प्रगतिशील समाज को इससे कोई परहेज नही ,उनके लिए यह आधुनिकता का एक अंग है ।
सुप्रिया ने अपनी अकेली माँ को बड़े संघर्षों के बीच जीवन गुजारते देखा है ,वह जब बहुत छोटी थी तो उसके पिता की आतंकवादियों ने गोली मार कर हत्या कर दी थी । वह माँ को बहुत पसंद करती है ,मगर माँ का अकेले संघर्ष करना उसे बहुत खलता था ।वह फिर कश्मीर नही जाना चाहती, वह भारत के किसी रेगिस्तानी कोने में बस जायेगी ,मगर उसे कश्मीर की सुंदरता में नही जाना, वहाँ अपनी संस्कृति शेष नही बची है ।
जबसे वह प्रयाग आई है उसे गंगा का कछारी मैदान बहुत आकर्षित करता है , उसका जन्म भले ही प्रयाग में नही हुआ है मगर उसे न जाने क्यों प्रयाग अपना लगता है ।
उसे विभुम भी तो अच्छा लगता है ,कश्मीरी पंडित नही है तो क्या हुआ ,ब्राह्मण तो है । माँ जरूर मान जायेगी ,इन्ही ख्यालों में खोई रहती है, सुप्रिया ।
विभुम और सुप्रिया दोनो का एक अच्छा दोस्त है , जनार्दन दूबे।
जनार्दन दूबे जमुनापार के विंध्य क्षेत्र के किसी गाँव के रहने वाले हैं ,टीका लगाकर एमबीबीएस की क्लास करने आते है ,नियमों के पक्के जनेऊधारी ब्राह्मण ।
जनार्दन के पापा संस्कृत महाविद्यालय में प्राध्यापक हैं ।जनार्दन दूबे अपने पापा से बहुत डरते हैं । जनार्दन पहले दिन से ही सुप्रिया को पसंद करते हैं, मगर बेचारे डर के मारे अपनी बात नही कह पाये और विभुम जी उनसे पहले ही बाजी मार गये। मगर जनार्दन मित्रता में ही खुश हैं ,उन्हे ब्वायफ्रेंड नही बनना ।
देखते देखते एक वर्ष बीत गया ,अब दोनों तृतीय वर्ष के छात्र हैं ,मगर विभुम में कुछ परिवर्तन आने शुरू हो गयें हैं ।उसके ऊपर आधुनिक बनने का भूत सवार हो रहा है । सुप्रिया को किसी लड़की ने बताया है कि विभुम सिगरेट पीता है ,मगर उसे यकीन नही ,वो विभुम से खुद पूछ लेगी।
आज पहली जनवरी है ,आज अंग्रेजी नववर्ष है । विभुम ,सुप्रिया को फोन करता है –
विभुम- सुप्रिया! आज शाम को न्यू ईयर में पार्टी है, चलना है ,चलोगी न ?
सुप्रिया – विभुम ! कैसा नववर्ष, किसका नववर्ष ? मैं नही मनाती अंग्रेजी नववर्ष । मेरे पापा अपने धर्म , अपनी संस्कृति के लिए राक्षसों की गोली का शिकार हो गये , मुझे अपनी संस्कृति से प्यार है । ठीक है , जिनका नववर्ष है , उन्हे उनका नववर्ष मंगलमय हो, मगर मुझे मत घसीटो !
विभुम- तुम बहुत बड़ी रूढ़िवादी हो !
सुप्रिया – हाँ यही मान लो !

विभुम कई दिनों तक सुप्रिया से नही बोला ,अंततोगत्वा जनार्दन दूबे मध्यस्थ बनकर आये ,पुनः सब कुछ पटरी पर आ गया । सुप्रिया पुनः कोमल ,बासंती ,मखमली सपने सजाने लगी ।
लड़ते झगड़ते समय बीतता गया ,अभी मेडिकल कॉलेज का वार्षिकोत्सव शुरू होने वाला है ,सुप्रिया बहुत खुश है ।पूरा एक सप्ताह उत्सव जैसा माहौल रहेगा ,वार्षिकोत्सव मजे मे बीता ,खेलकूद, सांस्कृतिक कार्यक्रम, और भी न जाने क्या क्या।
आज वार्षिकोत्सव का अंतिम दिन है , आज डीजे नाइट्स का प्रोग्राम है ,जिसमें कनफोड़ू संगीत पर युवा रात के अंतिम पहर तक नाचेंगे।
दिन बीता ,शाम आई ,मेडिकल कालेज के पार्क में डीजे लग गया है। थोड़ी देर में डीजे नाइट्स शुरू हो गया ,मेडिकल कालेज के तमाम जोड़े,एकाकी छात्र ,दिलफेंक आशिक, दिलजले दीवाने सभी ने हो हल्ला के साथ पूरी मस्ती में नाचना शुरू किया । सुप्रिया भी विभुम के साथ नाच रही थी ।जनार्दन दूबे भोंडे भोजपुरी/पंजाबी गानों पर नाचने को उचित नही समझते ,मगर मित्रगण उन्हें भी खींच लाये हैं ,वह चुपचाप पार्क की रेलिंग के सहारे मूकदर्शक बने खड़े हैं ।
विभुम के कुछ दोस्त आये ,और विभुम थोड़ी देर के लिए बोलकर सुप्रिया को अकेला छोड़कर चला गया ,मगर दुबारा जब लौटकर आया तो सुप्रिया के पाँवों के नीचे से जमीन खिसक गई, क्योंकि विभुम ने शराब पी रखी थी , सुप्रिया तत्काल रूम पर चली गई ,वह बड़ी देर तक चुपचाप रोती रही,उसे अपने सारे सपने टूटते हुए नजर आये ,उसकी सहेलियां सही ही कह रही थी ,विभुम सच में बदल गया है ।
अगर शराब ,सिगरेट आदि आधुनिकता का अनिवार्य अंग है तो मैं रूढ़िवादी ही सही !, इन्ही उल्टे सीधे विचारों को गले लगाकर ,सुप्रिया रोते रोते सो गई ।
विभुम इस सबसे अनजान दारू के नशे में दोस्तों के साथ रात के अंतिम पहर तक झूमता रहा।

अगली शाम को जब शराब का नशा और थकान कम हुई तो विभुम ने सुप्रिया को फोन किया – सुप्रिया ! मुझे माफ कर दो ! मुझे दोस्तों ने जिद करके पिला दिया ,मैं पीना नही चाहता था ।
सुप्रिया- तुम मुझसे बात मत करो ! तुम कोई दुधमुंहे बच्चे हो ,जो किसी ने जबर्दस्ती तुम्हें शराब पिला दी ,तुम सच में बदल गये हो ,मुझे तुमसे कोई बात नही करनी ।
सुप्रिया ने फोन काट दिया ।
विभुम ने कई बार फोन किया ,मगर सुप्रिया ने फोन नही उठाया ।
विभुम उदास मन से अपने दोस्तों के पास पहुँचा ,दोस्तों ने महफिल जमा रखी थी । कल रात की बची हुई मदिरा को समाप्त करने का अथक प्रयास जारी था , विभुम ने भी दो चार पैग चढ़ाये और दोस्तों के बहकावे में आकर ,सुप्रिया को मैसेज किया कि-
“तुम बहुत पिछड़ी मानसिकता की लड़की हो ,तुम्हे जिंदगी जीने का मतलब ही नही मालूम, तुम रूढ़िवादी हो , तुम रूढ़िवादी ही रहोगी ,मुझे तुम जैसी लड़की की कोई जरूरत नही , आई हेट यू “।

सुप्रिया को यह संदेश पढ़कर गहरा आघात लगा ,बड़ी देर तक रोती रही , और कर भी क्या सकती थी ?

अगली सुबह जनार्दन दूबे ने चहकते हुए बताया -अरे सुप्रिया ! कल मैं लड़की देखने जा रहा हूँ ।लड़की ने एन आई टी से बीटेक किया है । मगर थोड़ी देर में ही उसने सुप्रिया के उतरे हुए चेहरे से भाँप लिया कि कुछ गड़बड़ है ।
उसने सुप्रिया से पूछा तो, सुप्रिया ने रोते हुए विभुम का वह संदेश दिखा दिया ।
जनार्दन ने कहा कि मैं विभुम को समझाता हूँ ,मगर सुप्रिया ने यह कहते हुए कि ,”पानी अब सर के ऊपर हो गया है” साफ मना कर दिया ।
अगले दिन जनार्दन दूबे को लड़की देखने जाना था,तो उन्होंने जिद करके सुप्रिया को अपने साथ ले लिया । विंध्याचल धाम के एक नामी धर्मशाला में लड़की वालों ने इंतजाम कर रखा था ।
लड़की और लड़का मतलब जनार्दन दूबे एक दूसरे से मुखातिब हुए ,लड़की ने अंग्रेजी में ही सारी बातें की ,जनार्दन ने भी एक आध बातें पूछीं, कार्यक्रम इस निर्णय पर संपन्न हुआ कि लड़की और लड़का जैसा निर्णय लेंगे, वही निर्णय सर्वमान्य होगा ।
लड़की सबकुछ अंग्रेजी मे पूछ रही थी ,इस बात से जनार्दन के पिताजी को अजीब लगा ,मगर जनार्दन ने अंग्रेजी को मात्र एक भाषा बताकर उस मुद्दे को यह कहते हुए नकार दिया कि , किसी की भाषा से उसके व्यवहार और संस्कारों का आंकलन नही कर सकते ।
दो दिन बाद लड़की के घरवालों ने फोन करके बताया कि लड़की का मन बदल गया है ,वह अभी आगे की पढ़ाई करेगी ,शादी नही करेगी । मगर किसी तीसरे आदमी से पता चला कि लड़की ने इसलिए मना कर दिया क्योंकि जनार्दन बहुत पुराने ख्यालों वाले व्यक्ति हैं ।

सुप्रिया और विभुम के बीच दूरियां बढ़ती गई, न विभुम बुरी आदतें छोड़ने को तैयार था और न ही सुप्रिया उसे उसके उपार्जित अवगुणों के साथ अपना पा रही थी ।

इसी बीच सुप्रिया की माँ सुप्रिया से मिलने आई ,जब जनार्दन को यह पता लगा तो वह उन्हें रिसीव करने रेलवे स्टेशन गया ।माता जी के पैर छुए और उन्हें गर्ल्स हास्टल तक छोड़ा , जाते जाते अपने घर घूमने का न्यौता दे गया ।
सुप्रिया की माँ को जनार्दन बहुत पसंद आया ,वह उसके घर भी गई ।जनार्दन के पापा और सुप्रिया की माँ के बीच कुछ ऐसी बातें भी हुई ,जिससे जनार्दन अनभिज्ञ था ।
बस लौटते वक्त जनार्दन से इतना पूछा गया ,-तुम्हें सुप्रिया कैसी लगती है?
और यही सवाल सुप्रिया से जनार्दन के संबंध में पूछा गया ।

विभुम अपने दोस्तों की महफिल में बैठा था और तब तक बै के व्हाट्सएप ग्रुप में एक निमंत्रण पत्र प्रगट हुआ –
“शुभ विवाह – जनार्दन संग सुप्रिया”
विभुम उदास हो गया ,और दार्शनिकों की तरह बोला – हम लकीर के फकीर हैं, हम शराब सिगरेट के सारे अवगुण जानते हुए इनका सेवन करते हैं, सच पूछा जाये तो हम रूढ़िवादी हैं,और इसी रूढ़िवाद ने मुझसे सुप्रिया को दूर कर दिया ,घिन आती है मुझे ऐसे प्रगतिवाद पर । प्रगतिवादी तो जनार्दन है वह जानता है कि सुप्रिया कभी मुझसे प्रेम करती थी ,मगर वह सुप्रिया से शादी कर रहा है वह उसके टूटे हुए सपनों में रंग भरना चाहता है ।
इतना कहकर उसने सिगरेट का लंबा कश खींचा और मुँह से ढेर सारा धुँआ बाहर किया ,और चुपचाप आकाश की ओर निहारने लगा,वह विषाक्त धुआँ उसके और स्वच्छ आकाश के बीच फैल गया, मानो वह धुआँ न हो पश्चाताप हो ।

                               – डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी

*डॉ. दिवाकर दत्त त्रिपाठी

नाम : डॉ दिवाकर दत्त त्रिपाठी आत्मज : श्रीमती पूनम देवी तथा श्री सन्तोषी . लाल त्रिपाठी जन्मतिथि : १६ जनवरी १९९१ जन्म स्थान: हेमनापुर मरवट, बहराइच ,उ.प्र. शिक्षा: एम.बी.बी.एस. एम.एस.सर्जरी संप्रति:-वरिष्ठ आवासीय चिकित्सक, जनरल सर्जरी विभाग, स्वशासी राज्य चिकित्सा महाविद्यालय ,फतेहपुर (उ.प्र.) पता. : रूम नं. 33 (द्वितीय तल न्यू मैरिड छात्रावास, हैलट हास्पिटल जीएसवीएम मेडिकल कॉलेज कानपुर (उ.प्र.) प्रकाशित पुस्तक - तन्हाई (रुबाई संग्रह) उपाधियाँ एवं सम्मान - १- साहित्य भूषण (साहित्यिक सांस्कृतिक कला संगम अकादमी ,परियावाँ, प्रतापगढ़ ,उ. प्र.द्वारा ,) २- शब्द श्री (शिव संकल्प साहित्य परिषद ,होशंगाबाद ,म.प्र. द्वारा) ३- श्री गुगनराम सिहाग स्मृति साहित्य सम्मान, भिवानी ,हरियाणा द्वारा ४-अगीत युवा स्वर सम्मान २०१४ अ.भा. अगीत परिषद ,लखनऊ द्वारा ५-' पंडित राम नारायण त्रिपाठी पर्यटक स्मृति नवोदित साहित्यकार सम्मान २०१५, अ.भा.नवोदित साहित्यकार परिषद ,लखनऊ ,द्वारा ६-'साहित्य भूषण' सम्मान साहित्य रंगोली पत्रिका लखीमपुर खीरी द्वारा । ७- 'साहित्य गौरव सम्मान' श्रीमती पुष्पा देवी स्मृति सम्मान समिति बरेली द्वारा । ८-'श्री तुलसी सम्मान 2017' सनातन धर्म परिषद एवं तुलसी शोध संस्थान,मानस नगर लखनऊ द्वारा ' ९- 'जय विजय रचनाकार सम्मान 2019'(गीत विधा) जय विजय पत्रिका (आगरा) द्वारा १०-'उत्तर प्रदेश काव्य श्री सम्मान' विश्व हिंदी रचनाकार