गीत/नवगीत

बासंती ऋतु

कुहरा छँटा, खेत सरसों में
बासंती ऋतु आयी
नव पल्लव फिर सजे पेड़ पर
यौवन की सुधि छायी

हरे भरे गेहूँ के खेतों
में झूमे पुरवाई
बारिश ने छोटे-छोटे
छीटों से छौंक लगाई
रंगों ने आकर चुपके
होली की बात बताई

कुहरा छँटा, खेत सरसों में
बासंती ऋतु आयी

मेंहदी लगी दुल्हनियाँ छीले
हरी मटर की फलियाँ
फूलों संग हँसती है देखो
नन्हीं-नन्हीं कलियाँ
हरी भरी साड़ी पहने
धरती ने ली अंगड़ाई

कुहरा छँटा, खेत सरसों में
बासंती ऋतु आयी

घर मे सजी रसोई महकी
और धनिया की चटनी
ताजी-ताजी धूप गुनगुनी
आँगन चिड़ियाँ चहकीं
आमों के पेड़ों पर
फिर से नई मंजरी आई

कुहरा छँटा, खेत सरसों में
बासंती ऋतु आयी।

— डॉ. रजनीश त्यागी