मुक्तक/दोहा

दोहे “कच्चेघर-खपरैल”

मास फरवरी आ गया, बढ़ा सूर्य का ताप।
उपवन में कलियाँ-सुमन, करते क्रिया-कलाप।।

पिघल रहे हैं ग्लेशियर, दरक रहे हैं शैल।
नजर न आते नगर में, कच्चेघर-खपरैल।।

दिन ज्यों-ज्यों बढ़ने लगा, चढ़ने लगा खुमार।
मौसम सबको बाँटता, वासन्ती उपहार।।

चहक उठी है वाटिका, महक उठा है रूप।
भँवरे गुंजन कर रहे, खिली-खिली है धूप।।

जैसे-जैसे आ रहा, प्रेमदिवस नज़दीक।
वैसे-वैसे हो रहा, मौसम भी रमणीक।।

जोड़ों पर चढ़ने लगा, प्रेमदिवस का रंग।
रीत पुरानी है वही, किन्तु नये हैं ढंग।।

कर्कश सुर में गा रहे, कागा भौंडे गीत।।
नये साज के शोर में, बदल गया संगीत।।

बरस रहा शृंगार है, सरस रहा मधुमास।
जड़-चेतन को हो रहा, मस्ती का आभास।।

(डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

*डॉ. रूपचन्द शास्त्री 'मयंक'

एम.ए.(हिन्दी-संस्कृत)। सदस्य - अन्य पिछड़ा वर्ग आयोग,उत्तराखंड सरकार, सन् 2005 से 2008 तक। सन् 1996 से 2004 तक लगातार उच्चारण पत्रिका का सम्पादन। 2011 में "सुख का सूरज", "धरा के रंग", "हँसता गाता बचपन" और "नन्हें सुमन" के नाम से मेरी चार पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। "सम्मान" पाने का तो सौभाग्य ही नहीं मिला। क्योंकि अब तक दूसरों को ही सम्मानित करने में संलग्न हूँ। सम्प्रति इस वर्ष मुझे हिन्दी साहित्य निकेतन परिकल्पना के द्वारा 2010 के श्रेष्ठ उत्सवी गीतकार के रूप में हिन्दी दिवस नई दिल्ली में उत्तराखण्ड के माननीय मुख्यमन्त्री डॉ. रमेश पोखरियाल निशंक द्वारा सम्मानित किया गया है▬ सम्प्रति-अप्रैल 2016 में मेरी दोहावली की दो पुस्तकें "खिली रूप की धूप" और "कदम-कदम पर घास" भी प्रकाशित हुई हैं। -- मेरे बारे में अधिक जानकारी इस लिंक पर भी उपलब्ध है- http://taau.taau.in/2009/06/blog-post_04.html प्रति वर्ष 4 फरवरी को मेरा जन्म-दिन आता है