लघुकथा

आलिंगन दिवस

“का है रे छुटकी ? सबेरे सबेरे काहें बछिया के पीछे पड़ी है ?”
“अरे अम्मा ! हम सुने हैं कि आज शहर मां गाय का आलिंगन दिवस मनाया जानेवाला है। एही खातिर हम बछिया को पकड़ रहे हैं कि इसको लेकर पास के शहर मां चले जाएँगे।”
“अरे तो इससे का होगा ? हमरी सुध लेनेवाला तो कोई नहीं है।”
“अरे अम्मा ! तुम बात को समझती नाहीं हो। आजादी के बाद से इत्ते साल बित गए, कउनो हम गरीबन को तो गले लगाया नहीं। अब हमरी गइया को इ मौका मिलनेवाला है तो हम काहें इ मौका गँवाएँ ? जरा सोचो, इन शहरी लोगन को गइया कहाँ मिलेगी हम गरीबन की गइया के अलावा ? का पता गायमाता के गले लगते हुए कउनो बड़े आदमी को हम गरीब लोग भी नजर आ जाएं ?”

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।