इतिहास

रामकृष्ण परमहंस जयंती विशेष (22फरवरी)

एक छोटे से बालक नरेंद्र को विवेकानंद और उस विवेकानंद को स्वामी विवेकानंद बनाने वाले गुरु स्वामी रामकृष्ण परमहंस एक ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्हें कई बार मां काली का साक्षात्कार हुआ । उनकी दैवीय कृपा से ही आपने वेद वेदांत तथा तंत्र मंत्र में कई सिद्धियां अर्जित की । विवेकानंद जब अध्यात्म व स्वयं की खोज में सभी साधु संतों से मिल रहे थे तभी उन्हें रामकृष्ण परमहंस के रूप में एक ऐसा गुरु मिला जिन्होंने विवेकानंद के जीवन की दिशा बदल दी । रामकृष्ण परमहंस का जन्म बंगाल के एक निर्धन ब्राह्मण परिवार में हुआ, इनके बचपन का नाम गदाधर था, पिताजी की मृत्यु के बाद इनके बड़े भाई इन्हें कोलकाता ले आए। यही काली माता मंदिर में इनके बड़े भाई पुजारी के रूप में नियुक्त थे, वहीं से मां काली के प्रति अगाध श्रद्धा गदाधर में विद्यमान हुई, धीरे-धीरे यह श्रद्धा भक्ति के साथ सिद्धि तक पहुंच गई। बालक गदाधर का परिष्कृत रूप स्वामी श्री रामकृष्ण परमहंस बने।
काली मां में श्रद्धा भक्ति से परेशान होकर परिवार ने इनका विवाह करवा दिया, परन्तु विवाह के पश्चात भी यह अध्यात्म से जुड़े रहे तथा दक्षिणेश्वर में तंत्र मंत्र की शिक्षा ली। वहीं से इन्हें वेद वेदांत का ज्ञान तोतापुरी महाराज से मिला, यह वही समय था जब स्वामी विवेकानंद कॉलेज में अध्ययनरत थे एवं अपनी अध्यात्म विज्ञान के प्रति जिज्ञासा के कारण उनके प्रश्नों के उत्तर उनके प्रोफेसर तक नहीं दे सकते थे तब इनके कॉलेज के एक प्रोफेसर ने इन्हें बताया कि आपके प्रश्नों के उत्तर में तो नहीं दे सकता परंतु दक्षिणेश्वर के एक संत हैं जो आपकी सारी जिज्ञासाओं का समाधान कर सकते हैं तब नरेंद्र स्वामी रामकृष्ण के पास आए।
बालक नरेंद्र व स्वामी रामकृष्ण का जब पहली बार मिलना हुआ तभी रामकृष्ण समझ गए थे कि यह वही बालक है जिसकी मैं प्रतीक्षा कर रहा था। विवेकानंद से मिलकर रामकृष्ण परमहंस भावविभोर हो गए थे और उन्होंने स्वामी विवेकानंद को कहा कि “तुम अब तक कहां थे मैं कब से तुम्हारी प्रतीक्षा कर रहा था।” पहली बार मिलने पर स्वामी रामकृष्ण के कहे गए यह कथन बालक नरेंद्र को समझ में नहीं आए परंतु स्वामी रामकृष्ण स्वयं भविष्य दृष्टा थे नरेंद्र के उनके पास आने से पहले ही उन्होंने कई सिद्धियां अर्जित कर ली थी इस गुरु को ऐसे ही शिक्षक की आकांक्षा थी जो आज नरेंद्र के रूप में उनके सामने खड़ा था, आज वह विवेकानंद को शिष्य रूप में पाकर पूर्ण हुई।
बालक नरेंद्र अर्थात स्वामी विवेकानंद ने पहली बार मिलते ही रामकृष्ण परमहंस उसे पूछा कि “क्या आप ईश्वर को जानते हैं ? “राम कृष्ण जी ने उत्तर दिया “हां जानते हैं”, नरेंद्र ” क्या आपने उन्हें देखा है” रामकृष्ण जी ” हां अवश्य देखा है” नरेंद्र”₹ ” क्या आपने उनसे बात की है” श्री रामकृष्ण परमहंस ” हां बिल्कुल जैसे आप और मैं बात कर रहे हैं उसी तरह” नरेंद्र ” क्या आप मुझे दिखा सकते हैं” तब स्वामी रामकृष्ण परमहंस ने विवेकानंद को बैठने के लिए कहा और अपना एक हाथ उनके शीश पर रखकर आंखें बंद करने को कहा जैसे ही स्वामी विवेकानंद ने अपनी आंखें बंद की उनके शरीर में बहुत अधिक ऊर्जा का संचार होने लगा, इतनी अधिक उर्जा के कारण स्वामी विवेकानंद बेहोश हो गए और जब इन्हें होश आया तब रामकृष्ण परमहंस ने उन्हें समझाया ईश्वर से मिलने के लिए आपको शारीरिक और मानसिक दोनों रूप से सक्षम होना पड़ेगा। तभी से विवेकानंद ने श्री रामकृष्ण परमहंस को अपना गुरु स्वीकार किया तथा एक आदर्श शिष्य के रूप में उनके पास रहकर उनकी सेवा में रत हो गए। जितना आध्यात्मिक ज्ञान स्वामी विवेकानंद को मिला इसका लगभग पूरा श्रेया उनके गुरु श्री रामकृष्ण परमहंस को जाता है। निश्चित रूप में प्रवक्ता होने के कारण स्वामी विवेकानंद ने भारत ही नहीं विदेश में भी सनातन संस्कृति का परचम लहराया परंतु उनके एक-एक शब्द के पीछे उनके गुरु का आशीष ही रहा ऐसे आदर्श  श्री रामकृष्ण परमहंस की आज जयंती है।
स्वामी विवेकानंद के प्रेरणादायक विचार उनके गुरु की ही शिक्षा का नतीजा थे, विवेकानंद ने ही वेलूर मठ की स्थापना कर रामकृष्ण मिशन की शुरुआत की थी जिसका उद्देश्य गुरु रामकृष्ण परमहंस की शिक्षा से पूरे संसार को परिचित कराना था जिसमें वे बहुत हद तक सफल भी हुए। रामकृष्ण ही थे जिन्होने ज्ञान प्राप्ति के बाद सभी धर्मों का अध्ययन किया और बताया कि सभी धर्मों एक हैं और वे एक ही ईश्वर की पूजा करते हैं।
— मंगलेश सोनी

*मंगलेश सोनी

युवा लेखक व स्वतंत्र टिप्पणीकार मनावर जिला धार, मध्यप्रदेश