गीतिका/ग़ज़ल

रगड़े झगड़े खींचा तानी मारा मारी काए कू

रगडे झगडे खीचातानी मारा मारी काए कू
कर रक्खा है अपने ऊपर शैतां भारी काए कू

दो गज कपड़ा नौ मन लकड़ी काफ़ी अंतिम कारज को
नाहक जोड़ रहा है दौलत इतनी सारी काए कू

हो नुकसान नफ़ा जिसका आधार सरासर धंधा है
धंधे को तू मान रहा है रिश्तेदारी काए कू

ख़ुदगर्ज़ी रिश्तों से लेकर यार सलाह मुसीबत में
अपने मर्ड़र की ही ले लूँ आप सुपारी काए कू

ईन्सां का लालच यदि अपनी हद को पार नही करता
दुनिया में आती कोरोना सी बीमारी काए कू

जिन आँखों ने उनके सपने देखे अपनी आँखों में
उन अपनो ने दे दी आँखों में लाचारी काए कू

बंसल सच ही जीतेगा जब है मालूम तुझे तो फ़िर
पाल रखी है फ़ितरत में इतनी अय्यारी काए कू

सतीश बंसल
२२.०२.२०२३

*सतीश बंसल

पिता का नाम : श्री श्री निवास बंसल जन्म स्थान : ग्राम- घिटौरा, जिला - बागपत (उत्तर प्रदेश) वर्तमान निवास : पंडितवाडी, देहरादून फोन : 09368463261 जन्म तिथि : 02-09-1968 : B.A 1990 CCS University Meerut (UP) लेखन : हिन्दी कविता एवं गीत प्रकाशित पुस्तकें : " गुनगुनांने लगीं खामोशियां" "चलो गुनगुनाएँ" , "कवि नही हूँ मैं", "संस्कार के दीप" एवं "रोशनी के लिए" विषय : सभी सामाजिक, राजनैतिक, सामयिक, बेटी बचाव, गौ हत्या, प्रकृति, पारिवारिक रिश्ते , आध्यात्मिक, देश भक्ति, वीर रस एवं प्रेम गीत.