मुक्तक/दोहा

कविता गंध बिखेरती

कविता स्वप्न सँवारती, भाव भरे उर इत्र।
जीवन पुस्तक में गढ़े, रुचिर सफलता चित्र।।

कविता गंध बिखेरती, कविता है जलजात।
बिन कविता के जग लगे, श्वास रहित ज्यों गात।।

गीत सोरठा मनहरण, दोहा रोला छंद।
चौपाई हरिगीतिका, श्रोता करें पसंद।।

हिम सा शीतल शांत है, कभी धधकती आग।।
विजयशालिनी अस्त्र है, कविता मन का राग।।

कविता जो जन रच रहे, रहते सदा प्रसन्न।
दुख पीड़ा संताप से, कभी न होते खिन्न।

कषाय कल्मष से बचा, करती है कल्याण।
कविता मानस में भरे, प्रमुदित प्रेरक प्राण।

— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com