बाल कविता

बचपन

पंख नहीं पर उड़ जाता है।
इंद्र धुनुष सा बन जाता है,
सात रंगों से भरी है दुनिया
हर रंग कितना न्यारा है
बचपन कितना प्यारा है

भोली सूरत सच्ची सच्ची
बिन मांगे सब मिल जाता है
हर बच्चा अपने घर का ही
होता राज दुलारा है
बचपन कितना प्यारा है………

मस्त पवन सा उड़ जाता है,
फूल की खुशबू बन जाता है।
नन्हा पौधा बड़ा हो गया
बनता सबका सहारा है
बचपन कितना प्यारा है…..

ऊंच,नीच का ज्ञान नहीं है,
रंगों का अभिमान नहीं है
झगड़ा करके फिर संग खेलें
रिश्तों को ऐसे सँवारा
बचपन कितना प्यारा है…….

मुझको बहुत ही पढ़ना है,
आगे भी तो बढ़ना है।
अजब अनोखी दुनियां में,
अगला नाम हमारा है
बचपन कितना प्यारा है…….

मस्त पवन से उड़ते हैं,
कितने प्यारे ये दिन हैं।
खेल ,खिलौना ,खाना, पीना
मस्ती भरा नज़ारा है
बचपन कितना प्यारा है………

सारी मुश्किल, सारे सवाल
पल भर में निबटाता है,
बहता जैसे नदिया का जल।
बस बहता ही तो जाता है।
बचपन हमसे छीनो मत
ये अधिकार हमारा है।
बचपन कितना प्यारा है…

— आसिया फारूकी

*आसिया फ़ारूक़ी

राज्य पुरस्कार प्राप्त शिक्षिका, प्रधानाध्यापिका, पी एस अस्ती, फतेहपुर उ.प्र