गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ज़िंदगी को अर्थ सच्चे बख़्शती है पाठशाला।
अर्चना पूजा शिवाला बंदगी है पाठशाला।
अंधेरों को रौशनी की एक नईं तजवीज़ देती,
चमकता सूर्य, सितारा, दोस्ती है पाठशाला।

अक्ल के जौहरी इसके मस्तिष्क से तीक्ष्ण,
कर्म मार्ग के रत्त्न से चमकती है पाठशाला।

आलसी कमज़ोर आदत इसके पूरक होती नहीं है,
तपस्वी साध्क को देती ज़िंदगी है पाठशाला।
ख़बसूरत इसमें शिक्षा की है दुल्हन शोभनीए,
शिष्य, गुरू के कंधें पर पालकी है पाठशाला।

यह किसी विज्ञान की अंगुली में इए मंगलोत्त्सव है,
बहुत मूल्यवान अतुल्य आरसी है पाठशाला।

इससे ख़ुशबू फैलती है चमन की शोहरत बनकर,
भव्य शुद्ध पत्तों में खिलती एक कली है पाठशाला।
इसकी मंज़िल एक करे, जो प्यार दे, तहज़ीब देवे,
कर्म भीतर माधुर्य वाली गली है पाठशाला।

इसके अम्बर में करोड़ों ही सितारों की कथा है,
अनगिनत सूरज की अनुपम रौशनी है पाठशाला।
‘बालमा’ यह माँ है, बापू है, गुरू है ईश्वर है,
यह जनूं है, तपस्या है, आशकी है पाठशाला।

— बलविन्दर ‘बालम’

बलविन्दर ‘बालम’

ओंकार नगर, गुरदासपुर (पंजाब) मो. 98156 25409