मुक्तक/दोहा

लगे गुलाबी धूप

फागुन में हैं गुण भरे, लगे गुलाबी धूप।
सघन शीत में था बुझा, सुंदर निखरा रूप।।
जमे दिवस घुलने लगे, मिला फाग का ताप।
खुशियाँ बिखरी गेह में, दूर हुए संताप।।
राह ताकती कामिनी, खड़ी बिछाये नैन।
तप्त देह ज्यो नेह जल, मिले पिया सुख चैन।।
आलस के दिन आ गये, है अलसाई देह।।
धूप लगी है फैलने, लेकर गठरी नेह।।
उपले अनय अभाव के, जलें होलिका संग।
न्याय नीति सद्भाव के, महक उठे शुभ रंग।।
— प्रमोद दीक्षित मलय

*प्रमोद दीक्षित 'मलय'

सम्प्रति:- ब्लाॅक संसाधन केन्द्र नरैनी, बांदा में सह-समन्वयक (हिन्दी) पद पर कार्यरत। प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में गुणात्मक बदलावों, आनन्ददायी शिक्षण एवं नवाचारी मुद्दों पर सतत् लेखन एवं प्रयोग । संस्थापक - ‘शैक्षिक संवाद मंच’ (शिक्षकों का राज्य स्तरीय रचनात्मक स्वैच्छिक मैत्री समूह)। सम्पर्क:- 79/18, शास्त्री नगर, अतर्रा - 210201, जिला - बांदा, उ. प्र.। मोबा. - 9452085234 ईमेल - pramodmalay123@gmail.com