कथा साहित्यकहानी

औरत के संघर्ष की कहानी

यह एक औरत के संघर्ष की कहानी है। किसी भी औरत की कहानी हो सकती है। जन्म से लेकर मरने तक वह हर कदम पर संघर्ष करती रहती है। अपने स्वाभिमान, आज़ादी, हक़ और समाज में समानता के लिए वह अकेली ही संघर्ष करती है।

ऐसे ही नारी की कहानी है यह। इस कहानी की मुख्य किरदार है सरस्वती। यह कहानी उस के जीवन की कहानी है ।

अपने नाम के अनुरूप सरस्वती का स्वभाव भी नरम और मृदुल वाणी था। सरस्वती ने अपने जीवन में हर एक चुनौती, परेशानी और किसी भी विपरीत स्तिथि का ईमानदारी, हौसले और मेहनत से सामना किया था ।

आज उसको इन सब का फल मिल रहा है। वह स्टेज पर अपनी बेटी वर्षा को स्नातक की डिग्री लेते हुए गर्व से देख रही है । कितनी मुश्किल और मेहनत से उसने अपनी बेटी को पढ़ाया और लिखाया है ।

गरीबी में, छोटी उम्र में विधवा होते हुए भी सरस्वती ने अपनी इकलौती बेटी को शिक्षित किया ताकि वह अपने पैरो पर खड़ी हो सके।

सरस्वती अतीत में खो गई। काश मैं भी पढ़ सकती, सरस्वती सोचती है। उसको पढ़ने का बेहद शौक था, पर गांव में पांचवी कक्षा तक ही सरकारी स्कूल था। हाई स्कूल गांव से 10 कोस दूर शहर में था। शहर में गुंडागर्दी की घटनाएं इतनी बड़ गई थी जिसके कारण आए रोज़ लड़कियों से छेड़ छाड़ की घटनाएं हो रही थी । हर रोज़ टेलीविज़न पर या समाचार पत्र कोई न कोई ऐसी घटना देखने और पढ़ने को मिलती जिसमे किसी लड़की का बलात्कार किया जाता था । जो लड़कियां शहर में पड़ रही थी उनके माता पिता ने भी उनकी पढ़ाई भी छुड़ा थी दी।

सरस्वती बड़ी होने लगी तो उसके शरीर का विकास और सुन्दर रूप को देख कर स्कूल आते जाते गांव के मनचले युवक उसको देख कर सीटी बजाते और कुछ ना टिप्पणियां करते रहते। एक बार तो किसी मनचले युवक ने उसका रास्ता ही रोक लिया था। वह घबरा गई थी और किसी तरह उस युवक से बच कर घर वापिस आ गई। जब उसने घर पर यह बात बताई तो उसका घर से निकलना बंद हो गया और 15 साल की उम्र में उसकी शादी 21 वर्ष के नंदू से कर दी गई । नंदू दसवीं तक पड़ा था और शहर के एक प्राइवेट फैक्ट्री में नौकरी करता था। उसको फैक्ट्री में ही रहने के लिए एक कमरे का क्वार्टर मिल गया ।

उसके सुखी संसार में एक दिन भूचाल आ गया। एक दिन ड्यूटी पर एक दुर्घटना में नंदू की मौत हो गई। भरी जवानी में वह अकेली विधवा रह गई। अपने मायके नहीं जा सकती थी क्यूंकि उसके माता पिता का देहांत हो गया था। सरस्वती अपनी दूध पीती बच्ची के साथ अकेली इस संसार में रह गई थी

अकेली औरत को कहाँ कोई जीने देता है? समाज में वहशी और दरिंदे की कोई कमी नहीं जो बेसहारा, अकेली और उस जैसी सुन्दर और जवान विधवा औरत को नोच कर खाने के लिए तैयार रहते है। पर कहते है ना की मारने वाले से बचाने वाला बड़ा होता है। उसने फैक्ट्री के मालिक से बात की जिनोह्णे उसपर तरस खा कर उसे अपनी बेटी को पालने और घर के काम के लिए रख लिया और अपने घर में एक कमरा रहने के लिए दे दिया।

सरस्वती की बेटी मालकिन की बेटी के साथ बड़ी हुई और उसके साथ पढ़ लिख कर सारे ज़िले में प्रथम आई है।

हाल तालियों से गूँज उठा। सरस्वती वर्तमान में लौटआई ।

वह अपनी आँखों से ख़ुशी के आंसुओं को पोंछती है।

हमारी कहानी के पात्र सरस्वती ने एक बार फिर यह साबित कर दिया की एक औरत अपनी ममता, मेहनत और दृढ़ निश्चय से हर मुश्किल परिस्तिथि का सामना कर सकती है।

डॉक्टर अश्वनी कुमार मल्होत्रा

डॉ. अश्वनी कुमार मल्होत्रा

मेरी आयु 66 वर्ष है । मैंने 1980 में रांची यूनीवर्सिटी से एमबीबीएस किया। एक साल की नौकरी के बाद मैंने कुछ निजी अस्पतालों में इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर के रूप में काम किया। 1983 में मैंने पंजाब सिविल मेडिकल सर्विसेज में बतौर मेडिकल ऑफिसर ज्वाइन किया और 2012 में सीनियर मेडिकल ऑफिसर के पद से रिटायर हुआ। रिटायरमेंट के बाद मैनें लुधियाना के ओसवाल अस्पताल में और बाद में एक वृद्धाश्रम में काम किया। मैं विभिन्न प्रकाशनों के लिए अंग्रेजी और हिंदी में लेख लिख रहा हूं, जैसे द इंडियन एक्सप्रेस, द हिंदुस्तान टाइम्स, डेली पोस्ट, टाइम्स ऑफ इंडिया, वॉवन'स एरा ,अलाइव और दैनिक जागरण। मेरे अन्य शौक हैं पढ़ना, संगीत, पर्यटन और डाक टिकट तथा सिक्के और नोटों का संग्रह । अब मैं एक सेवानिवृत्त जीवन जी रहा हूं और लुधियाना में अपनी पत्नी के साथ रह रहा हूं। हमारी दो बेटियों की शादी हो चुकी है।