सामाजिक

बच्चों को हर सुविधा के साथ जिम्मेदारी भी दीजिए

बच्चों के सारे शौक़ पूरे करना हर माँ-बाप की ख़्वाहिश होती है, खुशी होती है। अपने ख़्वाबों को परे रखकर, अपना पेट काटकर हर माँ-बाप बच्चों को राज कुमार और राज कुमारी की तरह रखना चाहते है। हर सुख सुविधा से सज्ज ज़िंदगी देकर बच्चों को वो ज़िंदगी देना चाहते है जो खुद को नहीं मिली। बेशक दीजिए हर सुविधा, पर एक जिम्मेदारी के साथ बच्चों को आत्मनिर्भर बनाते हुए। सहज, सुलभ मिली सहुलियत की उतनी कद्र नहीं होती। बच्चों की हर जायज़-नाजायज़ मांग को पूरा करना बच्चों को बिगाड़ देता है।
बच्चे की हर मांग पूरी न करें, लेकिन ना करने का कारण भी उसे जरूर बताएं। समझाएं कि जिसकी वह मांग कर रहा है, वह वाकई जरूरी है भी या नहीं। बच्चों से खुलकर संवाद करें। उन्हें समय दें। अच्छे बुरे का फ़र्क समझाईये।
पैसों की वैल्यू समझना बचपन से ही सिखाईये। एक उम्र के बाद बच्चों को वो समझ देनी जरूरी होती है कि पैसें पेड़ पर नहीं उगते, कितने बीस मिलाने पर सौ बनते है। भले आप करोड़ पति, या अरब पति हो। अगर बीस, बाईस साल के बेटे को आप स्कूटर या बाइक लाकर देते है तो इस शर्त के साथ दीजिए, कि देख बेटे लाख रुपये का बाइक लाकर देते है पर पेट्रोल भरवाने की जिम्मेदारी तेरी रहेगी, फिर जितना मर्ज़ी चाहे घूमो। फ़ेरारी या मर्सिडीज भी दीजिये, पर इसी शर्त के साथ कि पेट्रोल का जुगाड़ भाई तू करेगा, ताकि बच्चों को जिम्मेदारी उठाने का महावरा हो और पैसों की कीमत भी समझ में आए। सच मानिए बेटा समय से पहले जिम्मेदार और समझदार बन जाएगा।
यही बात बेटियों के लिए भी उतनी ही लागू होनी चाहिए। आगे की पढ़ाई से लेकर किसी भी चीज़ को आसानी से देने की बजाय एक जिम्मेदारी के साथ दीजिए कि अगर एयर हास्टेस बनना है, या फ़ेशन डिज़ायनर बनना है, तो पार्ट टाइम जाॅब करके फ़ीस का जुगाड़ करना होगा। सच मानिए ये शिक्षा बेकार नहीं जाएगी! इसी बहाने बेटी आत्मनिर्भर बनकर अपने पैरों पर खड़ी होना सीख जाएगी, जो आजकल के ज़माने में बहुत ही जरूरी है।
बच्चों को हर सुविधा सहज हासिल करवाकर निर्माल्य मत बनाईये। तपने दीजिए संघर्ष के यज्ञ में, कुंदन की तरह निखर जाएँगे अगर बच्चों को ज़िंदगी की चुनौतियों से लड़ना सिखाना है, तो चार लोग सुनेंगे तो क्या कहेंगे वाले कथन को तोड़ मरोड़ कर दरिया में ड़ाल दीजिए।
बच्चों को खुद अपनी समस्याओं के बारे में जानने दीजिए और समस्याओं का हल निकालने दीजिए। बच्चों को यह बात गांठ बांध लेनी चाहिए कि हम गिरने से भी बहुत कुछ सीखते है। अपने दम पर गिरना, संभलना उसके बाद पाने की खुशी ही अलग होती है।
बेशक आपका बच्चा पढ़ाई के साथ नौकरी करेगा तो लोग इधर-उधर की बातें करेंगे ही, ये देखिए फलाने भाई का बेटा बाप अरब पति है फिर भी नौकरी कर रहा है। ऐसी बातों को कान पर मत धरिए, बच्चों को हर परिस्थिति से लड़ने के काबिल बनाईये। वक्त कभी किसीका एक सा नहीं रहता, कभी-कभी वक़्त इंसान पे ऐसा भी आता है राह में छोड़के साया भी चला जाता है, तब कम सुविधा में चलाना और अपने दम पर आगे बढ़ना बचपन से सीखा होगा तो ज़िंदगी के उतार चढ़ाव में जूझना आसान रहेगा। बच्चों को ये हुनर सिखाना भी एक तरह का प्यार है, परवाह है और माँ-बाप की जिम्मेदारी भी।
बच्चों को राजा-महाराजा सी ज़िंदगी देने के लिए तपस्वी की तरह पालिए। परवरिश ऐसी हो कि आगे जाकर अपने दम पर बच्चें ऐसे बनें कि, ज़िंदगी की तपिश उसे जला न पाए। हर परिस्थिति से उभरने में आसानी होगी और ज़िंदगी सहज लगेगी।
— भावना ठाकर ‘भावु’

*भावना ठाकर

बेंगलोर