लघुकथा

हथियार

प्रौढ़ साक्षरता अभियान के तहत कस्बे में शुरू की गई रात्रि पाठशाला में आई कुछ प्रौढ़ महिलाएं शिक्षा ग्रहण कर रही थीं। कक्षा अध्यापिका श्रीमती गीता जी ने मानव सभ्यता के क्रमिक विकास के बारे में महिलाओं को समझाते हुए कहा, “जैसा कि हम जानते हैं, आवश्यकता आविष्कार की जननी होती है। मानव सभ्यता के विकास में भी जैसे जैसे आवश्यकता महसूस होती गई वैसे वैसे मानव शरीर में क्रमिक परिवर्तन होता गया। पाषाण युग में जब इंसान गुफाओं में रहा करता था, उसके तीक्ष्ण नाखून व लंबे दाँत उसके लिए हथियारों का काम किया करते थे, ठीक वैसे ही जैसे आज भी हिंसक पशु किसी हथियार के मोहताज नहीं होते। इनके तीक्ष्ण नाखून और पंजे ही उनके लिए शिकार का प्रबंध करते हैं और समय आने पर उनके यही हथियार उनकी रक्षा भी करते हैं…..” बड़ी देर तक अध्यापिका श्रीमती गीता जी ग्रामीण महिलाओं को पढ़ाती रहीं।

शहर में घटित एक दुर्घटना में अपने पति को खो चुकी तीस वर्षीया रेणु भी जीवनयापन के लिए शिक्षा के महत्व को समझते हुए इस पाठशाला में दाखिल हुई थी। पाठशाला से छूटने के बाद सभी महिलाओं के साथ रेणु भी अपने घर की तरफ बढ़ी। महिलाएं थोड़ी देर तक मुख्य रास्ते पर उसके साथ चलीं पर कुछ दूर जाने के बाद सभी अलग अलग पगडंडियों पर अपने अपने घर की तरफ बढ़ गईं।

सुनसान रास्ते पर तेज कदमों से चलती हुई रेणु जल्द से जल्द अपने घर पहुँच जाना चाहती थी लेकिन तभी पगडंडी के किनारे एक चिर परिचित परछाईं पर नजर पड़ते ही वह सिहर उठी। उसने पहचानने में बिल्कुल भी गलती नहीं की थी। वह मुखिया का लड़का ‘ देवा’ ही था। वही देवा, जिसने अभी कुछ दिन पहले ही उसके लाख हाथ पैर जोड़ने व मिन्नतें करने के बावजूद उसकी एक न सुनी थी और अपनी मनमानी करके ही माना था। मुखिया के प्रभाव के आगे खामोश रहने में ही भलाई है। किसी तरह अगर उसने पुलिस में शिकायत दर्ज भी करवा दी तो गवाहों व सबूतों का हवाला देकर शीघ्र ही उसे छोड़ दिया जाएगा। उसकी सुनेगा भी कौन ? इसी सोच के चलते उस दिन वह यह पाशविक अत्याचार खामोश रहकर सह गई थी लेकिन अब वह सजग हो उठी थी।
उसके कानों में अध्यापिका गीता जी के कहे वाक्य बार बार शोर मचा रहे थे, ‘…..उसके तीक्ष्ण नाखून व लंबे दाँत उसके लिए हथियारों का काम किया करते थे….!’
देवा अब उसके काफी करीब आ चुका था। अचानक उसने झपटकर रेणु को अपनी बाँहों में जकड़ लिया और उसके अधरों का रसपान करने का प्रयास करने लगा।
अपनी योजना के मुताबिक बेबसी का भाव दर्शाती रेणु सही मौके का इंतजार कर रही थी।

कुछ देर बाद एक मर्मभेदी चीख के साथ देवा जमीन पर गिरकर हाथ पाँव पटकने लगा। चाँद की दूधिया रोशनी में रेणु ने साफ साफ देखा, उसके चेहरे व गर्दन का अधिकांश हिस्सा खून से सराबोर था। दरअसल रेणु ने देवा के निचले होठों को अपने तीक्ष्ण दाँतों से चबाकर उसके जबड़े से अलग कर दिया था।
विजयी अट्ठहास के साथ रणचंडी बनी रेणु के कदम स्वतः ही पुलिस स्टेशन की तरफ बढ़ने लगे, क्यूँकि कभी न मिटाए जा सकनेवाला सबूत देवा के कटे होंठ के रूप में अब उसकी हाथों में सुरक्षित था। उसके रक्तरंजित तीक्ष्ण दाँत किसी हथियार की मानिंद चमक रहे थे।

— राजकुमार कांदु

*राजकुमार कांदु

मुंबई के नजदीक मेरी रिहाइश । लेखन मेरे अंतर्मन की फरमाइश ।