कहानी

सत्य कहानी – और वह चली गई

विजय और मनोरमा दोनीं पति-पत्नी विश्वविद्यालय से सेवानिवृत्त प्रोफेसर हैं और लंबे समय से शिमला में ही रहते थे। आजकल अपनी बेटी के पास आए हुए थे और इन दिनों बेटी के परिवार में दामाद और बेटा ही यहां थे। कुछ ही समय पहले मनोरमा के पेसमेकर लगा था और अब सहज महसूस कर रही थी। घर में सबकुछ ठीक चल रहा था ।

विजय को ऐसा लगा कि अब यहां घर के वातावरण से शायद कुछ परिवर्तन हो जाए और मनोरमा से बार बार कहता रहा कि तुमने बहुत दुख और कष्ट सहें , जबतक मैं हूं , तुम्हें कुछ नहीं होगा, हौसला रखो।हम  सभी तुम्हारे लिए पूरी कोशिश कर रहे हैं और चाहते हैं कि शीघ्र स्वस्थ हो जाओ।

मध्य अगस्त में मनोरमा की पीठ के दर्द और अनियंत्रित मधुमेह के कारण हस्पताल में चैक-अप करने के उपरांत भर्ती किया गया तथा एक सप्ताह बाद घर आए। मधुमेह नियंत्रण के लिए घर में ही रक्त परीक्षण कर दिन में चार बार इन्सुलिन का टीका लगाते और पीठ दर्द के लिए आवश्यकतानुसार गोली ले रहे थे। उच्च रक्तचाप का उपचार भी चल रहा था।

मनोरमा ने एक दिन कहा” थोड़ा स्वास्थ्य में सुधार हो जाए तो कहीं आसपास घूमने चलेंगे। यह रोग तो आजीवन हैं,इनके साथ ही जीना होगा। ”
इसे सुनकर विजय ने विश्वास के साथ कहा, “तुम जैसा चाहोगी वैसा ही होगा। वैसे तो इच्छा मेरी भी है और तुम बहुत अच्छा कह रही हो, तुम साहसी और बहुत सहनशील हो और साथ ही स्ट्रांग विल पावर वाली हो इसलिए ठीक हो जाओगी, अवश्य चलेंगे।”
ऐसे ही दोनों आपस में बातचीत करते रहते थे।

इस दौरान “फिर लौट बहारें आई ” कविता संग्रह के लिए अपनी कविताओं का चयन किया और कुछ नई भी लिखीं और उन्हें मोबाइल पर स्वयं ही टाईप किया तथा  प्रकाशक को भेज दिया। नई रचनाओं में कुछ निराशा और आक्रोश झलक रहा था। इसपर विजय ने कहा ” यह साहित्यिक विचार हैं या निजी हैं, निजी हैं तो ठीक नहीं है।हमें केवल शारीरिक कष्ट है और वह तो रहना ही है, किसी का दोष नहीं, निराशा छोड़ो और आराम से जीओ, भविष्य में सब ठीक होगा।”
” मुझे कोई चिंता नहीं है, मैं तो सबकुछ देख रही हूं और महसूस भी कर रही हूं।डॉक्टर के कहे अनुसार कर रही हूं परंतु मेरे कारण सब लोगों के काम मे विघ्न आरहे हैं और सब को कष्ट सहना पड़ रहा है। पर तुम चुप क्यों रहते हो।मेरे लिए बहुत व्यय हो रहा है।” मनोरमा का उत्तर  सुनकर विजय ने कहा ” सबका अपना अपना भाग्य है, तुम किसी को जान-बूझकर तो कष्ट दे नहीं रही हो। व्यय की चिंता मत करो, भगवान ने आजतक हमारे किसी भी काम के लिए पैसे की कमी नहीं आने दी, अभी हमारे पास पर्याप्त प्रबंध है। अपनी शारीरिक अक्षमता के कारण मुझे अच्छा नहीं लगता, कितना नकारा हो रहा हूं तुम्हारा कोई काम नही कर सकता हूं।हर समय देखकर अपने ऊपर गुस्सा आता है इसीलिए चुप रहता हूं।”
“ऐसे मत सोचो, अब बीमारी के कारण कमज़ोर हो, कुछ दिन में स्वस्थ हो जाओगे, फिर ठीक हो जाएगा। शायद मेरा भी स्वास्थ्य सुधार हो। सब चिंता छोड़ दो और ईश्वर पर भरोसा रखो।” मनोरमा ने प्यार से समझाया।
इसी तरह एक दूसरे को दिलासा देते समय बीत रहा था।
इसी मध्य शिमला से इनके मार्गदर्शन के लिए पी एच  डी के 2 छात्र आए और 2 दिन काफी समय के लिए बातचीत की।लगा सब ठीक चल रहा है।
मनोरमा सितम्बर में बेटी और दामाद के जन्मदिन तथा अपने विवाह  की वर्षगांठ पर स्वस्थ तो लगी थी परंतु दुर्बल थी, ऐसी ही दशा अक्तूबर में बेटी के बेटे के जन्मदिन पर थी। हम सब को लगा कि धीरे-धीरे इनका स्वास्थ्य अच्छा हो जाएगा।परंतु ऐसा नहीं हुआ और स्वास्थ्य धीरे-धीरे बिगड़ना आरम्भ हो गया।
इस बीच एंजियोग्राफी के लिए हस्पताल जाना पड़ा तो एंजियोप्लास्ट्री भी करवानी पड़ गई। बहुत कष्टदायक निदान है और अब मनोरमा से यह सब सहन करना बहुत कठिन था परंतु उसने सब सह लिया। इस पीड़ा को सहने का अभास विजय को बहुत महसूस हुआ और वह बहुत दुखी और क्षुब्ध हुआ।

विजय का अपना जन्मदिन अक्तूबर के अंतिम दिन था और उस दिन  मनोरमा हस्पताल में ही थी और सदा की भांति शुमकामनायें दी।  विजय ने थैंक यू, वैरी मच कहा और जन्मदिन तुम्हारे घर चलने पर मना लेंगे। चार दिन बाद घर  आई।
पिछले 10 दिनो से पैरों की सूजन बढ़ ही रही थी। घर में एक नर्स और एक सहायक का प्रबंध किया गया तथा आक्सीजन की भी व्यवस्था कर दी गई थी। अब इनका घर में चलना-फिरना बहुत कम हो गया । लगभग सभी काम बैड पर ही सीमित हो गये। एक व्हील चेयर भी ले ली गई ताकि घर में इधर-उधर जा सकें और वाशरूम आना-जाना हो सके। घर में  पहले एल्ब्युमिन की 3 बोतल बड़ी कठिनाई से इंट्रावेनस द्वारा चढ़ाई गई थी तथा हस्पताल में 2 और चढ़ाई जानी थी । इसलिए पुनः हस्पताल ले जाया गया और वहां पेट पर कट लगाकर एक बोतल ही चढ़ाई जा सकी। शरीर में रक्त की मात्रा 9 से 6 एच बी रह गया तो एक यूनिट रक्त चढ़ाया। मनोरमा ने कहा कि अब और कष्ट सहने की हिम्मत नहीं है और मुझे घर जाने दो।  हस्पताल से आन रिक्वेस्ट छुट्टी मिल गई और घर आगई।

धर आकर एक दिन और एक रात ही रहे।
8 अगस्त को मनोरमा का स्वास्थ्य शीघ्रता से बिगड़ना आरम्भ हो गया था और शाम को 4 बजे फिज़ियोथिरैयी के लिए डाक्टर आया तो देखकर कहने लगा कि इन्हें हस्पताल ले जाना चाहिए क्योंकि शरीर की सूजन बढ़ रही है, यह घर में ठीक नहीं हो सकती। कुछ ऐसा लगा कि रोगी के शरीर पर ऐसी सूजन और चमड़ी का रंग काला होना उसका अंतिम समय आने के लक्षण हैं। सभी ने कहा कि हस्पताल ले जाना चाहिए। रात डेढ़ बजे मनोरमा को सूजन के कारण शरीर पर असहनीय पीड़ा हो रही थी और सांस लेने में भी कठिनाई थी तथा आक्सीजन लगाने पर भी राहत नहीं थी, अतः उसे हस्पताल ले जाने के अतिरिक्त कोई उपाय नहीं था। मनोरमा के न चाहते हुए भी उसे हस्पताल ले जाना पड़ा। पहले एच डी यू में रखा और बाद में आई सी यू में रखा गया। शरीर के आवश्यक अंग अयोग्य हो रहे थे और बी पी बहुत कम हो गया था। 9 और 10 के मध्य की रात 12 बजे के लगभग हस्पताल से फोन पर बताया कि मनोरमा का बी पी  बहुत कम है और आप यहां आएं । सभी आई सी यू में पहुंच गए और देखते-देखते सामने शांत भाव से वह सदा के लिए चली गई। इतने कष्ट सहते हुए भी मनोरमा शांत रही और आज विजय को लगा कि उसने आजतक सब कुछ चुपचाप सहा है जो अंतिम समय तक निभाया। 62 वर्ष का रिश्ता एक क्षण में बदल गया, मनोरमा स्वर्गवासी और विजय विधुर हो गया। वह कहा करती थी कि पहले उसे ही जाना है। उसकी इच्छा भगवान ने पूर्ण कर दी। विजय केवल मूक दर्शक ही बना रहा और कुछ नहीं कर सका क्योंकि वह बहुत महान थीऔर वह सच में चली गई।

डॉ. वी.के. शर्मा

मैं डॉ यशवंत सिंह परमार औद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय सोलन से सेवा निवृत्त प्रोफेसर बागवानी हूं और लिखने का शौक है। 30 पुस्तक 50 पुस्तिकाएं और 300 लेख प्रकाशित हो चुके हैं। फ्लैट 4, ब्लाक 5ए, हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी, संजौली, शिमला 171006 हिमाचल प्रदेश। मेल dr_v_k_sharma@yahoo.com मो‌ फो 9816136653