लघुकथा

आधुनिक ट्रिक

दास बाबू रिटायर हुए, एक उम्र बीत गयी, आफिस में हुकुम चलाते, घर में धौंस दिखाते हुए। घर मे हमेशा से एक गिलास पानी भी स्वयं से नही लेते, बाहर से आते ही, आवाज़ लगाते, “रवीना, कहाँ हो, कमरे में छुपकर मत बैठो, पानी लाओ, फटाफट चाय बनाओ, नहा कर आता हूँ।” उनकी हमेशा से आदत है, रात 11 बजे भी आएंगे, तो नहाना है।
समय को बदलते देर नही लगती। बच्चे अपनी गृहस्थी में व्यस्त हो गए। रह गए घर मे दो बुजुर्ग प्राणी, रवीना अधिकतर अपनी सहेलियों के साथ किटी पार्टी या अलग अलग समारोह में व्यस्त रहती और घर मे दास बाबू टेलीविज़न, मोबाइल, किताबे, समाचार पत्र में व्यस्त रहते।
बच्चे दूर थे, पर मम्मी पापा में उनकी जान बसती थी, रोज ही फ़ोन , व्हाट्सअप पर ध्यान रखते थे। कुक भी लगवाया, पर खाने के शौकीन दास बाबू को सिर्फ पत्नी रवीना के हाथ का ही खाना भाता। पर समय ने ऐसी करवट ली, कि पूरे जीवन वही चूल्हे चक्की में व्यस्त रही रवीना का मन उचट गया और वो भी लिखने पढ़ने में व्यस्त रहने लगी।
और पता नही कब दास बाबू मास्टर शेफ प्रोग्राम टेलीविज़न में देखते हुए, किचन के हर काम मे माहिर हो गए। मेड कुछ ऊपरी तैयारी कर देती थी। दास बाबू आधे घंटे में शानदार डिशेस बनाकर टेबल सजाने लगे और नए तरीकों से टेबल डेकोरेट कर हर दिन चार चांद लगाने में माहिर हो गए।
उनका कहना था, ये देखो ये है आधुनिक ट्रिक्, जब कोई रिटायर्ड मैनेजर, किचेन मैनेज करेगा, तो हर चीज व्यवस्थित मिलेगी। और पत्नी रवीना की तो दसों उंगलियां घी में ही थी, आराम ही आराम !!
— भगवती सक्सेना गौड़

*भगवती सक्सेना गौड़

बैंगलोर