कविता

जीवन चक्र

जीवन एक गणित है प्यारे, सीखो तुम इसमें जीना।
गुणा भाग कर आगे आओ, और रखो ताने सीना।।
छोटी छोटी सी खुशियों को, आहिस्ता से तुम जोड़ो।
बढ़े एकता भाईचारा, इनसे कभी न मुँह मोड़ो।।

आड़े तिरछे रिश्ते नाते, अमर बेल कहलाते हैं।
विषम समय चलता मानव का, चुपके से घट जाते हैं।।
अलग रीत है इस दुनिया की, समझ नहीं हम पाते हैं।
घूम रहे हैं एक वक्र में, आकर फिर मिल जाते हैं।।

नहीं समांतर कोई होते, ना कोई सीधी रेखा।
शेष बचे वे रोते रहते, एक दर्द मैंने देखा।।
मुँह में राम बगल में छूरी, वाणी को तरसाते हैं।
कैसी कैसी रीत जगत की, समझ नहीं हम पाते हैं।।

— प्रिया देवांगन “प्रियू”

प्रिया देवांगन "प्रियू"

पंडरिया जिला - कबीरधाम छत्तीसगढ़ Priyadewangan1997@gmail.com