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मैं चौकीदार भी नहीं !
एक ‘अनुज’ है, उसे देख बड़ी चिंता होती है ! बेहद कम खाते-पीते हैं, किन्तु ‘भोज’ अटेंड करेंगे ! पर इधर उनके मुँह से ‘हँसी’ गायब रहती है ! उल्टे चोर कोतवाल को डाँटे ! पर आज तो ‘उलटी’ हो गई…. सीखने हेतु अपेक्षित नहीं हैं, तो मैं क्या कर सकता हूँ ? यह गलती […]
जीना चाहती हूँ
हॉ मै जीना चाहती हूँ लेकिन तुम्हारे अधीन रहकर नही स्वतंत्रत होकर सभी बंधन से मुक्त होकर आखिर मेरे लिये ही सभी बंधन बने है तुम्हारे लिये कुछ नही तो आज सुन लो अब से मै भी नही बंधने वाली किसी बंधन में हॉ मै नारी हूँ विभिन्न रूपो मे पायी जाती हूँ मॉ,बेटी,बहन,बहु न […]
कविता
राँझना तुम्हे पता हैं अकेले बर्फ ही नही जमती वक्त भी जम जाता हैं हो जाता हैं सख्त चट्टानों की तरह जिस दिन तुम नजर नही आते अंधी हो जाती हूँ सबकुछ रुक जाता हैं मेरे सीने की धडकन मेरा लहू,मेरी साँसे जैसे अन्धेरा पथरा जाता हैं तो जान जाती हूँ कि कैसे तुम्हारे साथ […]