गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बढ़े हर कदम ने तेरे, मुझे हर पल सँवारा है
उसी ने ही सुनो प्यारा, नसीब ये सुधारा है

बहारों के नज़ारे सुन सदा ही तो रहे भाते
समय कितना मिला जो साथ मिल हमने गुज़ारा है

बने हम तो हुये है एक – दूजे के लिए ही हम
उधर तुमने इधर से तो, हमीं ने भी पुकारा है

करो अब याद पल सारे, चले थे घूमते हम तो
यही मौसम मिला प्यारा, किया हमको इशारा है

मिले ग़म ही मुहब्बत में, ख़लिश तपिश व तन्हाई
अभी किस्मत बनाती है, बना कोई बिचारा है

कहा तुमने चलो तो हम, चले चलते गये हम भी
मुहब्बत में तेरी हर बात मुझको तो गवारा है

हुई क्या बात ऐसी जो, जुदा ही हो गये हमसे
ज़रा – सी बात पे मुझसे किया तुमने किनारा है

— रवि रश्मि ‘अनुभूति’