धर्म-संस्कृति-अध्यात्म

नमस्ते और स्वामी दयानंद

भारत के केंद्रीय गृह एवं सहकारिता मंत्री श्री अमित शाह जी ने दिनांक 21 मार्च 2023 को अपने आधिकारिक ट्विटर हैंडल से ट्वीट किया- “क्या आप जानते हैं कि ‘नमस्ते’ शब्द महर्षि दयानंद सरस्वती जी ने हमको दिया? वरना शायद हम आज अभिवादन के लिए किसी विदेशी शब्द का इस्तेमाल कर रहे होते।”

मंत्री जी की यह बात कुछ महानुभावों को सुई जैसी चुभ गई और उन्होंने पेट भरकर इसकी निंदा की। वेद और स्वामी दयानंद जी को कभी न पढ़ने वाले प्रसिद्ध पत्रकार व लेखक श्री संदीप देव एवं श्री संजय तिवारी मणिभद्र ने एक विशेषज्ञ की तरह अपनी टिप्पणी उछाल दी।
•संजय तिवारी जी लिखते हैं- “…नमस्ते शब्द का उल्लेख यजुर्वेद में है। यह रुद्र के अभिवादन के लिए प्रयुक्त हुआ है।… अब इस बात से तो अमित शाह भी इंकार नहीं करेंगे कि यजुर्वेद स्वामी दयानंद सरस्वती के पहले लिखा गया होगा।…”
•दूसरी ओर संदीप देव जी लिखते हैं- “…दयानंदजी जिन वेदों को केवल मानते हैं, उन वेदों में ‘नमस्ते’ कहां-कहां आया है, कभी पृष्ठ पलट कर देखा है आपने।…”

१. अब जरा एक बात बताइए, यदि गांधी ने “भारत छोड़ो आंदोलन” दिया या सुभाष चंद्र बोस ने “दिल्ली चलो” का नारा दिया, तो क्या इसका मतलब गांधी और बोस से पहले भारत या दिल्ली शब्द विद्यमान ही नहीं था? श्री तिवारी जी के बौद्धिक दिवालियापन की हद्दपार तर्क का तो यहीं मटियामेट हो गया।
२. अब जरा संदीप जी का आक्षेप देखते हैं। क्या लिखा है वेदों में-
• “नमो महद्भ्यो नमो अर्भकेभ्यो नमो युवभ्यो नमो आशिनेभ्य:।” -ऋग्वेद 1/27/13
• “नमस्ते भगवन्नस्तु।” -यजुर्वेद 36/21
• “नमस्ते अग्न ओजसे।” -सामवेद 1/1/2/1
• “नमस्ते जायनामायै।” -अथर्ववेद 10/10/1
हां तो संदीप जी हमें बताएं कि आपके कौन से वेद में “नमस्ते” शब्द नहीं आया है?

जितने जोश के साथ ये लोग दयानंद जी को लक्ष्य साधकर लिखते हैं, उतने ही होश से ये कभी स्वाध्याय कर लेते। दर-अस्ल इनकी खीज अमित शाह के बयान से नहीं बल्कि स्वामी दयानंद और आर्यसमाज से है। ये लोग हिंदू समाज पर स्वामी दयानंद के योगदान का ज़िक्र तक नहीं करते। आर्यसमाज के प्रवर्तक स्वामी दयानंद जी ने डंके की चोट पर कहा- हमारे धर्मग्रंथ वेद हैं, ईश्वर एक है; अनेक नहीं, शिक्षा का अधिकार स्त्री और शूद्रों को भी समान रूप से है, हिंदी हमारी राष्ट्रभाषा है, मनुष्य जन्म से नहीं बल्कि कर्म से ब्राह्मण बनता है, झूठ-मूठ कंठी-तिलक-उपदेश देने वाले गुरु नहीं गडरिए हैं, सत्य का ग्रहण और असत्य का त्याग करना चाहिए, श्रीकृष्ण का चरित्र अत्युत्तम है; उन्होंने जन्म से मरणपर्यंत कोई अधर्म आचरण नहीं किया, चोरी-जुआ-मांसभक्षण-मद्यपान ये दुष्कर्म हैं, इत्यादि।

कालांतर में आततायियों के हमलों और वेदों के अध्ययन के अभाव ने हिंदुओं के बौद्धिक स्तर को इतना गिरा दिया कि अनेक मत-मतांतर बना लिए गए। उनमें वे अभिवादन के रूप में राधे-राधे, कोई जय गुरुजी की, कोई जय जिनेन्द्र, कोई जय बाबा, कोई जय दादी की, कोई जय पीर बाबा की, कोई जय साईं राम, कोई जय काले कौवे की आदि अभिवादन कर सामाजिक एकता को भंग करने में लगे रहते थे। स्वामी दयानंद ने वेदों का अनुशीलन करके अभिवादन के सही रूप “नमस्ते” को समाज में स्थापित किया जिसे हिंदू समाज सदियों पहले भूल चुका था। चूँ चूँ का मुरब्बा बन चुके हिंदू समाज को स्वामी जी के योगदान का आभारी होना चाहिए। परमात्मा इन्हें सद्बुद्धि दे!

— प्रियांशु सेठ

प्रियांशु सेठ

मैं प्रियांशु सेठ, वाराणसी का रहनेवाला हूं। स्वामी दयानन्दजी द्वारा प्रतिपादित आर्यसमाज के नियमों व उनके मन्तव्यों से प्रेरित होकर 'कृण्वन्तो विश्वमार्यम्' के लक्ष्य में यथासामर्थ्य प्रयासरत हूं। डॉ विवेक आर्य जी, दिल्ली के लेखों से प्रभावित होकर मेरी भी सम्पूर्ण ऊर्जा, बल व बुद्धि आर्ष ग्रन्थों के स्वाध्याय, वैदिक लेख और वैदिक धर्म के प्रसार हेतु समर्पित है। धन्यवाद!