गीत/नवगीत

दहशत फैली नगर नगर

सुलग रही है आग चतुर्दिक, दहशत फैली नगर नगर ।
कातिल बैठे घात लगाये, छीन रहे हैं सुख सारे ।
सभी जगह पर लूट-पाट है,गली गली में हत्यारे ।।
कहीं क्षोभ है कही क्रोध है, चिंता में जनता भारी
फैल रहीं है गुंडा-गर्दी, सहमे सहमे डगर डगर।।
हाल न पूछो माँ बहनों के, अस्मत खतरे में लगती ।
सहम उठी बम-बारूदों से, काँप रही सारी धरती ।।
मुश्किल में हर जीवन लगता, बढ़ी दिलों में है खाई ।
सारे जग में फैल रहा है, आखिर कैसा मचा ग़दर ।।
अंगारों पर चलना सीखे, हिम्मत तो रखनी होगी ।
सावचेत जनता को रहना, मुश्किल दूर तभी होगी ।।
माँ बहनों की करें सुरक्षा, अस्मत लूट नहीं पाये  ।
गली-गली हो पहरेदारी, माँ-बहनों की करें कदर ।।
— लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

लक्ष्मण रामानुज लड़ीवाला

जयपुर में 19 -11-1945 जन्म, एम् कॉम, DCWA, कंपनी सचिव (inter) तक शिक्षा अग्रगामी (मासिक),का सह-सम्पादक (1975 से 1978), निराला समाज (त्रैमासिक) 1978 से 1990 तक बाबूजी का भारत मित्र, नव्या, अखंड भारत(त्रैमासिक), साहित्य रागिनी, राजस्थान पत्रिका (दैनिक) आदि पत्रिकाओं में रचनाएं प्रकाशित, ओपन बुक्स ऑन लाइन, कविता लोक, आदि वेब मंचों द्वारा सामानित साहत्य - दोहे, कुण्डलिया छंद, गीत, कविताए, कहानिया और लघु कथाओं का अनवरत लेखन email- lpladiwala@gmail.com पता - कृष्णा साकेत, 165, गंगोत्री नगर, गोपालपूरा, टोंक रोड, जयपुर -302018 (राजस्थान)