लघुकथा

दोष

संजना कई दिनों से अनमने -सी थी। अपने पिता और भाइयों से थोड़ी नाराज। पिछले कुछ दिनों से न तो पिताजी का फोन आ रहा था ना ही किसी भाई भाभी का ।वह सोच-सोच के परेशान हो रही थी ऐसा उसने क्या कर दिया की मायकेवालों ने उसकी सुध ही लेनी छोड़ दी। मां के गुजरने के बाद मानो सब कुछ  बदल गया, पिताजी के रवैए में भी अजीब परिवर्तन आ गया है।
कई दिनों से इंतजार करने के बाद संजना से रहा नहीं गया । आखिरकार उसने ही पिताजी को फोन किया “पापा आप कैसे हैं? भैया भाभी कैसी है”!
“मैं ठीक ही हूं तुम्हारी मां के जाने के बाद यहां पर बहुत अच्छा कुछ भी नहीं रहा, तुम्हारी भाभीयों की मनमानी बढ़ गई है दिनेश और कैलाश दोनों ही अपनी पत्नियों से परेशान रहते हैं।” गहरी सांस लेते हुए पिताजी ने कहा
“आप भाभीयों को क्यों दोष दे रहे है? दिनेश और कैलाश भैया के रवैए में कितना परिवर्तन आ गया है, पहले तो हमेशा मेरे पास फोन कर हालचाल पूछते रहते थे अब तो कई -कई महीने हो जाते हैं उनसे बातचीत हुए, कभी मैं फोन करूं तो ठीक से जवाब तक नहीं देते।”
“इसमें इन बेचारों क्या दोष बहुओं ने उनका जीना मुहाल किया है,सारा दिन उनसे बिना बात के झगड़ती रहती है उनकी किसी बात पर ध्यान नहीं देती। हमने गलत लड़कियों को अपने घर कि बहू बना लिया है।” नाराज़ होते हुए पापा ने कहा।
संजना सोचने लगी पिताजी कैसे सारा दोष बहुओं पर लगा कर बेटों को मासूम बता रहे हैं। क्या हर वक्त बहुएं ही ग़लत होती हैं?
— विभा कुमारी “नीरजा”

*विभा कुमारी 'नीरजा'

शिक्षा-हिन्दी में एम ए रुचि-पेन्टिग एवम् पाक-कला वतर्मान निवास-#४७६सेक्टर १५a नोएडा U.P