आत्मकथा

सचिन वडेहरा की कहानी

मेरा नाम सचिन वडेहरा है। मेरा जन्म देहरादून के एक निजी अस्पताल में 26/05/1976 को हुआ। जन्म के 6 महीने तक मेरे परिवार वालों को सब कुछ सामान्य लग रहा था । लेकिन जब मेरी गर्दन टिक नहीं पाई , तो मेरे घर वाले मुझे डॉक्टर के पास ले गए। तब डॉक्टर ने बताया कि सचिन को (मुझे ) सेरेब्रल पाल्सी है और इसका इलाज सम्भव नहीं है।
यह सुनकर मेरा परिवार सदमे में आ गया। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी और मेरा इलाज कराने के साथ साथ अलग अलग धर्म स्थानों पर भी ले जाने लगे, लेकिन कोई सफ़लता नहीं मिली।
मेरी बहनों ने मुझे घर से ही शिक्षा देनी शुरू कर दी। लेकिन मेरा परिवार मेरे लिए बहुत चिंतित रहने लगा, क्योंकि उन्हें मेरा भविष्य अंधकारमय लगने लगा, जो स्वभाविक भी है।
1989 में मेरे पिता जी सरकारी नौकरी से रिटायर हो गए । लेकिन उन्होंने 60 वर्ष की आयु में भी हिम्मत नहीं हारी । उस आयु में भी मेरे पिता मुझे अपनी गोद में उठाकर डॉक्टरों के पास लेकर जाते थे। एक दिन कक्षा 10 की परीक्षा देने का विचार आया और मेने राष्ट्रीय मुक्त विद्यालय का फॉर्म भर दिया। लेकिन उस समय हमारे दिमाग में यह विचार नहीं आया कि जो लड़का मेरी परीक्षा के उत्तर पेपर में लिखेगा, वह मेरी बात नहीं समझ सकेगा, क्योंकि मेरी आवाज साफ़ नहीं है। इसी कारण से मैं पहला सेमिस्टर नहीं दे सका और मैं निराश हो गया।
स्वर्गीय नित्यानन्द स्वामी (प्रथम मुख्यमंत्री उत्तराखंड) मेरे पिता जी के अच्छे मित्र थे। उनको मेरे पिता जी ने पूरी बात बताई । वे परीक्षा शुरू होने से 10 दिन पहले एक लड़के का इंतज़ाम कर दिया करते थे, जो रोज़ आधा घंटा मेरे घर आकर मेरी बात समझने का प्रयास करता था और जो मैं बोलता था वह पेपर में लिखता था । इस प्रकार से मैंने स्नातक की उपाधि प्राप्त की । आगे शिक्षा लेने का मन था, लेकिन 2011 में पिता जी का स्वर्गवास हो गया । इसलिए आगे की शिक्षा नहीं ले पाया।
2015 में सोशल मीडिया के कारण अमित डोभाल जी और अपूर्व नॉटियाल जी से सम्पर्क हुआ। उनके साथ मिलकर दिव्यांग समाज के लिए सामाजिक कार्य करने लगा । मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं समाजिक कार्य कर सकूं गा
वर्ष 2016 से आज तक दिव्यांग मित्रों के साथ मिलकर मैंने विभिन्न आंदोलनों में हिस्सा लिया वर्ष 2016 में मेने पहली बार किसी आंदोलन में भाग लिया और तत्कालीन मुख्यमंत्री हरीश रावत के आवास का घराव किया जिसका परिणाम यह हुआ कि तत्कालीन सरकार ने दिव्यांग पेंशन में 200 रुपये की वृद्धि की और राज्य दिव्यांग आयोग बनाने की घोषणा की लेकिन वह बन नहीं सका इसी प्रकार अप्रैल 2018 में जब मेरे अनशनकारि दिव्यांग मित्रो को पुलिस जबरन उठा कर ले गई थी तो मैं अपने कुछ मित्रों के साथ अनशन पर बैठ गया थ । 26 अक्तूबर 2021 को 10 सूत्रीय मांगों को लेकर मुख्यमंत्री आवास का घेराव करने जा रहे थे तो इस मुझे कुछ छोटे भी आई । वर्ष 2016_17 में मैं एन पी डी आर डी का राष्ट्रीय मीडिया प्रभारी और प्रदेश उपाध्यक्ष (उत्तराखंड) रहा हूँ । वर्ष 2018_19 में मैं भारतीय नमो संघ (दिव्यांग प्रकोष्ठ)उत्तराखंड का प्रदेश अध्यक्ष रहा हूं । और वर्तमान में मैं जिला दिव्यांग अधिकार समिति (उत्तराखंड सरकार) का सदस्य हूँ। इसके साथ साथ मैं यू डी ई ए का उपाध्यक्ष औऱ डी एच एफ इंडिया का उतराखंड प्रदेश कॉर्डिनेटर भी हूँ।
इस दौरान मुझे अनेक सम्मान दिए गए । जैसे कि 15 अप्रैल, 2017 को भवन श्री कालिका माता समिति देहरादून द्वारा मुझे मेरे सामाजिक कार्य के लिए सम्मानित किया गया। 26 अक्तूबर, 2018 को माननीय विधायक श्री मुन्ना सिंह चौहान जी ने मेरे को सम्मानित किया। 9 अक्टूबर, 2021 को सक्षम संस्था द्वारा एन आई वी एच देहरादून में हुए एक भव्य कार्यक्रम में मुझे सक्षम गौरव सम्मान से सम्मानित किया गया ।
तत्पश्चात वर्ष 2018 में मेरी माता जी का भी निधन हो गया और अब मैं अपने एक हेल्पर के साथ रहता हूँ।
मेरी जिंदगी का एक ही लक्ष्य है । विकलांग मित्रों के विकास के लिए जी जान से काम करना।