मुक्तक/दोहा

दोहे

झूठ-सत्य के बीच में, हुई भयंकर जंग

सच दौडा़ इंसाफ को, आखिर आकर तंग।।
झूठे पंच बने वहाँ, झूठा ही सरपंच
झूठे सभी गवाह थे, गजब सजा था मंच।।
मुझसा सच्चा ना कहीं, कहे झूठ चिल्लाय
सत्य वचन की बात को, मानत कोई नाय।।
पलड़ा भारी झूठ का, सत्य हुआ भयभीत
घड़ियाली आंसू बहा, झूठ गया था जीत।।
निर्दोषी दोषी बना, दोषी हँस इतराय
झूठो ने मिल बैठके, सच को दिया गिराय।।
बेसुध होकर गिर पडा़, सिसक-सिसक के रोय
देख दुर्दशा सत्य की, मधुजा व्याकुल होय।।
सच्चा न्याय अधर्मियों, राम करे सो होय
अपनी करनी से जहाँ, बच ना पाए कोय।।
— नीतू शर्मा मधुजा

नीतू शर्मा 'मधुजा'

नाम-नीतू शर्मा पिता-श्यामसुन्दर शर्मा जन्म दिनांक- 02-07-1992 शिक्षा-एम ए संस्कृत, बी एड. स्थान-जैतारण (पाली) राजस्थान संपर्क- neetusharma.prasi@gmail.com