हास्य व्यंग्य

खट्टा-मीठा : मुहब्बत की दुकान

खुल गयी… खुल गयी… खुल गयी… आपके राज्य में हमारी “मुहब्बत की दुकान” खुल गयी! अब आपको मुहब्बत के लिए कहीं दूर नहीं जाना पड़ेगा। मुहब्बत का हर आइटम यहीं मिलेगा। आप यहाँ जमकर मुहब्बत कर सकते हैं।
हमें झूठे वायदों से मुहब्बत है। हमें झूठे सपने दिखाने से मुहब्बत है। इसी मुहब्बत के कारण आपने हमारी दुकान खुलवायी है। वायदे ऐसे-ऐसे जिनको कोई पूरा नहीं कर पाये। आप बस आशा करते रहिये और हमारी दुकानें खुलवाते और चलवाते रहिए।
हमें बुर्का से मुहब्बत है। हमें हिजाब से मुहब्बत है। हमें तीन तलाक़ से मुहब्बत है। हमें हलाला से मुहब्बत है। हमें जेहाद से मुहब्बत है। हमें आतंकवाद से मुहब्बत है। हमें बम-धमाकों और दंगों से मुहब्बत है। इनसे नफ़रत करने वालों की दुकान बन्द हो गयी। अब हमारी दुकान चलेगी- कम से कम पाँच साल।
हमें पाकिस्तान से मुहब्बत है। जमकर “पाकिस्तान ज़िन्दाबाद” के नारे लगाइए। आपको कोई नहीं रोकेगा। सब आवाज़ में आवाज़ मिलायेंगे। हमें घुसपैठियों से मुहब्बत है, हमें आतंकियों से मुहब्बत है। सभी का दिलखोलकर स्वागत है। उनको ज़्यादा से ज़्यादा संख्या में लेकर आइए। सबको आधार कार्ड मिलेगा, राशन कार्ड मिलेगा, क़ब्ज़ा करने की जगह भी मिलेगी और वोटर कार्ड भी मिलेगा।
हमें भ्रष्टाचार से मुहब्बत है। हमें घोटालों से मुहब्बत है। हमें कमीशनखोरी से मुहब्बत है। हम अपने पुराने दिन वापस लायेंगे। अब भ्रष्टाचार करना अतिरिक्त योग्यता मानी जाएगी। उनका सार्वजनिक अभिनंदन किया जाएगा।
जो इन सबसे नफ़रत करते हैं उनकी दुकान बन्द हो गयी। हमें उन नफ़रत करने वालों से नफ़रत है। हम सभी राज्यों में उनकी दुकानें बन्द करवाकर अपनी दुकानें खोलेंगे।
— बीजू ब्रजवासी