कविता

राणा प्रताप की जय बोलो

श्वेत घोड़े पर सवार राणा तूफानी रूप में दिखता था।
अपने उस विकराल रूप में, जिधर भी मुड़ जाता चेतक,
आंधी तूफान उमड़ता था।
शत्रु दल पर टूट पड़ता राणा तब लाशों का अंबार बीछ जाता था।
चेतक के वेग से और राणा के हुंकार से शत्रु भयभीत हो जाता था।
राणा जिस दिशा में चलता , महाकाल रूप धरता था।
मुगलों की सेना को तब यमराज रुप दिखता था।
जोश जरा न कम होता उन आदिवासी भीलों में,
राणा पूंजा था बलशाली, स्वामीभक्ति थी दिलों में।
माथे पर सूरज,आंखों में ज्वाला, हाथों में भाला।
 वीर शिरोमणि प्रताप, कितना था मतवाला!
बप्पा रावल की यह  पुण्य धरा, अरावली पर्वतमाला
भक्ति शक्ति की यह गौरव गाथा,कहती हैं यहां की वसुंधरा।
साहित्य,कला के पुजारी, मेवाड़ धरा के वीर शिरोमणि।
अमर महाराणा थे बलशाली।
मातृभूमि की रक्षा हेतु कल्ला राठौड़ ,जयमल राठौड़ ने दी थी कुर्बानी।
 झाला मन्ना का बलिदान अमर है, खुद ने शीश चढ़ाया था।
 मेवाड़ धरा आजाद रहे,यह मान उन्होंने निभाया था।
ना तोड़ था ना जोड़ था,राणा का योद्धा भारी था।
हमला इतना तीव्र था,दुश्मन में भय का साया था।
मां भवानी की जयकारों से, आकाश सारा गूंज जाता था।
एक एक योद्धा इतना बलशाली सौ पर भारी भारी था।
 ज्वाला सा उमड़ता शौर्य देख ,दुश्मन भी थरथर कांप रहा।
बाणों की वर्षा न कम होती, टंकार धनुष की नभ में गूंजती।
मैदान में कोहराम मचलता, रक्त उमड़ती नदियां बहती।
चेतक की टांपों से गूंज उठता, वह दृश्य अद्भुत गजब का था।
सर कटता पर धड़ लड़ता क्या अद्भुत वहां का नजारा था।
पर हिम्मत का सूरज कैसे डूब सकता,
चेतक ने स्वामी भक्ति का पाठ पढ़ा दिया।
घायल चेतक को देख कर राणा का दर्द पुकार उठा।
चेतक की बलिवेदी पर घायल शेर,
अपने रक्त अश्रुत नयनों से गरज उठा।
 जब तक सांसों में मेरी सांस है मेवाड़ धरा आजाद रहे।
सौगंध खाकर कहता हूं मेवाड़ का सूरज कभी न डूबने दूंगा।
अपने स्वाभिमान को न कभी मिटने दूंगा।
सब मिलकर एक बार बोलो 100 बार बोलो।
चेतक घोड़े के साथ राणा प्रताप की जय जयकार बोलो।
— डॉ. कान्ति लाल यादव

डॉ. कांति लाल यादव

सहायक प्रोफेसर (हिन्दी) माधव विश्वविद्यालय आबू रोड पता : मकान नंबर 12 , गली नंबर 2, माली कॉलोनी ,उदयपुर (राज.)313001 मोबाइल नंबर 8955560773