कवितापद्य साहित्यमुक्तक/दोहा

शोभा नहीं देता।

अगर जिंदा हो धरती पर बहुत सी उलझनें होंगी,
राह में कोई ना होगा बहुत सी अड़चनें होंगी।
ज़िंदगी है तो सुख दुख हैं जिंदगी है कशमकश में,
ख़त्म तकलीफें तब होंगी बंद जब धड़कनें होंगी।
बिना संघर्ष के जीना तुम्हें शोभा नहीं देता,
छिपाकर अश्क को पीना तुम्हें शोभा नहीं देता।
अगर धरती पे आए हो तो कुछ करके चले जाना,
मुफ़लिसी का जहर पीना तुम्हें शोभा नहीं देता।
किसी पर बोझ बन जाना तुम्हें शोभा नहीं देता,
मलाई मुफ्त की खाना तुम्हें शोभा नहीं देता,
भले ही लाख बन जाए तुम्हारे राह में संगी,
सगे रिश्ते भुला जाना तुम्हें शोभा नहीं देता।
बाप को मान ना देना तुम्हें शोभा नहीं देता,
मात का दिल दुखा देना तुम्हें शोभा नहीं देता,
ठोकरें मार देना तुम भले ही इस जमाने को
मगर मां बाप ठुकराना तुम्हें शोभा नहीं देता।

प्रदीप शर्मा

आगरा, उत्तर प्रदेश