गीतिका/ग़ज़ल

ख़तरे में है

हर मुहल्ला हर गली ख़तरे में है आजकल हर आदमी ख़तरे में है घेर रक्खा है ग़मों के झुंड ने एक छोटी सी ख़ुशी ख़तरे में है कैसे कर पायेगा रोगी का इलाज़ चारागर की ज़िंदगी ख़तरे में है इक ग़लतफ़हमी के पैदा होने से दोस्तों की दोस्ती ख़तरे में है इतनी सारी बंदिशें हैं […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

ख़ाली कभी भरा हुआ आधा दिखाई दे चाहे जो जैसा देखना वैसा दिखाई दे जैसे सराब दूर से दर्या दिखाई दे हर चेहरे में मुझे तेरा चेहरा दिखाई दे मुट्ठी में सब समेटने की आरज़ू लिए पैसे के पीछे दौड़ती दुनिया दिखाई दे औलाद चाहे जैसी हो माँ बाप को सदा अच्छा सभी से अपना […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

जब से हमारी सोच के पैकर बदल गये तब से निशातो क़ैफ़ के मन्ज़र बदल गये अह्सास के वो नर्म से बिस्तर बदल गये इक शब के साथ साथ गुले तर बदल गये दुनिया ने पहले लूट ली क़ुद्रत की आबरू फिर यों हुआ कि वक़्त के तेवर बदल गये फ़िक्रे सुख़न में ख़ून जलाता […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

बाग़ में इक भी शजर बाक़ी कहाँ छाया,गुल, बर्गो समर बाक़ी कहाँ इनमें अहसास ए ज़रर बाक़ी कहाँ बाप का बच्चों में डर बाक़ी कहाँ सारे इंसां बन के बैठे हैं ख़ुदा दुनिया में कोई बशर बाक़ी कहाँ कौन सोचे अच्छे कर्मों के लिए अब दुआओं में असर बाक़ी कहाँ क़ीमती सामान ने घेरी जगह […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

घर घर चूल्हा चौका करती करती सूट सिलाई माँ बच्चों खातिर जोड़ रही है देखो पाई पाई मां बाबूजी की आमद भी कम ऊपर से ये महंगाई टूटे चश्मे से बामुश्किल करती है तुरपाई मां टीका कुंडल हसली कंगन तगड़ी नथ बिछुए चुटकी बेटी की शादी की खातिर सब गिरवी रख आई मां सहते सहते […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आती न किसी काम, शराफ़त है अब मेरी बदनामियों से बढ़ रही शुहरत है अब मेरी जीने लगा हूँ अपनी ही शर्तों पे जब से मैं देखो सँवरने लग गयी किस्मत है अब मेरी दौलत कमाने में ही अबस उम्र कट गई दुनिया में यश कमाने की हसरत है अब मेरी अदना सा आदमी था […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

हक़गो होने का जो अक्सर दावा करते सच सुन कर उन लोगों के दिल दहला करते अपनों से हर बात छुपाने वाले, हमने देखे अंजानों से सब कुछ साझा करते आईना रखते हैं बेशक हम भी लेकिन सब से पहले उस में ख़ुद को परखा करते ऐसे भी हैं लोग जहां में बहुतेरे जो ख़ुद […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

उसका दूभर दुनिया में जीना हुआ पत्थरों के बीच जो शीशा हुआ साथ कोई दे न दे मेरा यहाँ साथ अपने ख़ुद को है रक्खा हुआ ज़िंदगी में मुश्किलों से जूझ कर अपने होने का सबब पैदा हुआ अक्स अपना देख कर हैरान हूँ लगता है शायद कहीं देखा हुआ दिख रहा जो ताब माथे […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

राहों में कभी खार बिछाती है ज़िंदगी फूलों के कभी हार सजाती है ज़िंदगी मुर्गे कफस को उड़ना सिखाती है ज़िंदगी पहरे भी बेशुमार बिठाती है ज़िंदगी कैसे जुबान खोले कोई अहले हक यहाँ हक गो को गुनहगार बनाती है ज़िंदगी देती है कभी छोड़ सफीनों को भंवर में कश्ती को कभी पार लगाती है […]

गीतिका/ग़ज़ल

ग़ज़ल

आज इस वातावरण के हम हैं ज़िम्मेदार ख़ुद इस क्षरित पर्यावरण के हम हैं ज़िम्मेदार ख़ुद दौड़ते रहते हैं हरदम स्वर्ण मृग के पीछे ही अपनी ख़ुशियों के हरण के हम हैं ज़िम्मेदार ख़ुद हमने भूमि वायु जल सब कुछ विषैला कर दिया इस बदलते आवरण के हम हैं ज़िम्मेदार ख़ुद हम ने ख़ुद अपने […]