पुरुष.. तुम क्या जतलाना चाहते हो ?
दशानन की तरह.. ओढ़ अनेकानन खुद का अस्तित्व छुपा जाते हो तुम क्या जतलाना चाहते हो ? दिल में छुपा
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Read Moreमर्यादा की बेड़ियाँ… तोड़ती सड़ी-गली परम्पराएँ… पीछे छोड़ती । सदियों से बिछे हुए… जाल हटाती तोड़ चक्रव्यू… नये ख्वाब सजाती।
Read Moreबड़ी मुश्किल से जान बचा कर फटेहाल कपड़ों में मदारी माधो जैसे-तैसे घर पहुँचा था। उसकी हालत देख कर उसका
Read Moreअक्सर … ट्रैफिक सिग्नल पर ख्वाब बेचते, ठण्ड में जमे से… अलाव सेंकते! जूठन से कहीं हैं भूख मिटाते, फुटपाथ
Read Moreसतयुग नहीं,,, वो भी कलयुग था ! जब इन्द्र सम पुरुष धर छद्मवेश करते थे शीलहरण और शाप की भागी
Read Moreकितने पाखण्डी बन धर्मगुरु करें ढोंग, अधर्म, पाखण्ड और मनमानी फैलाए तिलिस्म, असत्य की जमीं पर ! कहें… खुद ही
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