लघुकथा – जीने की वजह
सुबह वृद्धाश्रम पहुँच कर सारी कार्यवाही पूरी कर बेटा बहू जाने लगे तो हतप्रभ सा पोता बोला माँ दादाजी को
Read Moreसुबह वृद्धाश्रम पहुँच कर सारी कार्यवाही पूरी कर बेटा बहू जाने लगे तो हतप्रभ सा पोता बोला माँ दादाजी को
Read Moreदर्शक दीर्घा में बैठे हुए सोच रही थी कलाबाजियां दिखाते हुए तीन फिट के जोकर को जो चेहरे पर निरंतर
Read Moreपैरों की थकन क्या कहूँ उम्र हुई चलते चलते हर बार दिसंबर आता है यादें सुहानी छोड़ जाता है दिसम्बर
Read Moreतिनकों को जोड़कर बना घोंसला हमारा इस प्यारे से घोंसले में । अभी-अभी जन्मी हूँ। सुकोमल नरम सी नन्हें से
Read Moreआज मेरे अल्फ़ाज़ मुझसे खफा हो गए । खिड़की के रास्ते दफा हो गए । कितने मासूम लगते मुंह के
Read Moreद्वारे को दीप भी देहरी उदास। तेरे आगमन की आंगन को आस। आओगे हे दिल में आस। बांट लोगे दुःख
Read Moreभईयाजी नेता जी एक ही बड़का दांव जानते हैं ,वो हैं पैंतरे बाजी , चुनाव के बाद एक साल तक
Read More“सुन भाया एक बात बताओ । बड़े उदास लग रहे हो।” “भंवर जी के बताऊ, बेटा कह रहा था पिता जी
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