कभी-कभी हम भयभीत से हो जाते हैं यह सोचकर कि बदलते हुए सामाकि परिवेश में हमारी हिन्दी कहीं पिछड़ तो नहीं रही? सम्भवतया इसमें आंग्ल भाषा का प्रभाव भी शामिल हो, किसी हद तक हिन्दी का स्वरूप बिगाड़ने का दायित्व आम बोल-चाल में इंग्लिश का दखल भी है जिसे हम आज हिंग्लिश कहने लगे हैं। […]
Author: आशा शैली
नारी- कितनी बेचारी
प्रकृति कहीं धरती जैसी अचल वस्तु पर लाखों की संख्या में वृक्षादि वनस्पतियों के रूप में अपना सौन्दर्य बिखरा रही है, तो कहीं चौपाये-दोपाये आदि विचार रहे हैं। बिल्ली-चूहा की दुश्मन है तो कुत्ता बिल्ली का। इन्सान अपनी आवश्यकताओं के लिए जानवरों पर आश्रित हैं तो पशु अपनी उदरपूर्ति एवं के आश्रय के लिए न […]
नूरपुर का नूर रामसिंह
पूरे भारत में जिस समय क्रान्ति का लावा बार-बार उबल रहा था उस समय उत्तरी भारत के अनेक पहाड़ी राज्य आवागमन की कठिनाइयों के बावजूद इसकी लपेट में आते जा रहे थे। नूरपुर रियासत सिक्ख राज्य के पतन के साथ ही अंग्रेजों की झोली में आ गिरी। इसके भूतपूर्व राजा बीरसिंह 80 वर्ष की आयु […]
शुभ सभी संचार दे
अखिलेश्वरी, भुवनेश्वरी, सर्वेश्वरी माँ शारदे सम्बल हमें दे लेखनी का ज्ञान का आधार दे हे शुभ्र वसना तू सदा रहना मेरे संग-साथ ही वीणा की ध्वनि कानों में हो मसि लेखनी हो सहचरी शत् जन्म लूँ भारत में मैं, इतना मुझे अधिकार दे जहाँ वेद गाते यश तेरा होता है गान कुरान का वह देश […]
सुरक्षा का प्रश्न
सुबह से घर में बवाल मचा हुआ था। माँ के सन्दूक से सारे गहने किसी ने निकाल लिए थे। घर में बेटा बहू, बेटी और माँ चार ही प्राणी थे तो जाहिर है कि यह काम इन्हीं में से किसी का है, पर कोई बता भी तो नहीं रहा था। बेटे के कारोबार में शायद […]
बारह साल की वह लड़की
वह हवेली इतनी बड़ी थी कि पूरा दिन घूमते रहो तब कहीं जाकर पूरी देख सकते हो, हवेली क्या थी पूरा किला था। जिस हिस्से में वे लोग रहते थे वह तो जेल जैसी ऊँची दीवारों से घिरा हुआ था। रहने वाले बस तीन ही प्राणी थे। बारह साल की सतविन्दर और उसके माता-पिता सरदार […]
कहानी – अंतराल
उम्र के आठवें दशक में खड़ी रामकली, आँखें फाड़े अपने प्रौढ़ पुत्र को देख रही थी। वह सोच रही थी, ‘क्या ये उसी नथामल का पुत्र है जिसने विभाजन के कारण भूखे-प्यासे रहने पर भी किसी की दया नहीं स्वीकारी थी, किसी के आगे हाथ नहीं फैलाया था? पर सच तो यही था, इससे इनकार […]
कहानी – विकलांग
काठगोदाम से बरेली जाने वाले रेल-मार्ग पर ‘किच्छा’ एक छोटा-सा रेलवे स्टेशन है, काठगोदाम लाइन के लालकुआँ जंकशन से इस लाइन पर बहुत सारी गाड़ियाँ आती-जाती हैं। खास तौर पर बरेली, मथुरा, लखनऊ आदि मार्गों की गाड़ियों का तो दिन भर आना-जाना रहता है। उस दिन इस छोटे से रेलवे स्टेशन पर कुछ अधिक ही भीड़ थी, तरुणा को […]
महिलाएँ और भ्रूण हत्या
नारी के साथ जुड़ा शब्द ‘‘माँ’’ सारी सृष्टि को अपने अंक में समेटने की क्षमता रखता है। माँ सृष्टा है, जन्म दात्री है, ममता और दुलार का भण्डार है, किन्तु इसी ममता की छाँव के साथ जब हत्या जैसा क्रूर शब्द जुड़ जाता है (वह भी भ्रूण हत्या) तो अनजाने, अनचाहे मुँह का स्वाद कसैला […]
परम्परा
‘‘देखिए चाचा जी, आप ही समझाइए न बाबू जी को। हर रोज़ कामना से किसी न किसी बात पर ठान लेते हैं और निपटना मुझे पड़ता है। दफ्तर से लौटते ही उसका रोना झेला नहीं जाता।’’ ‘‘बेटा, कामना को भी तो समझाओ कि वह बड़ों से सभ्यता से बात किया करे।’’ ‘‘चाचा जी, कामना नए ज़माने की […]